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दिगंबर जैन मुनि चलते फिरते तीर्थंकर भगवान समान होते हैं। संयम और तप की जो पराकाष्ठा उनकी जीवन चर्या में दिखाई देती है, वह अन्यत्र मिलना असम्भव होता है। तप, संयम और त्याग का उनका जीवन किसी आश्चर्य से कम नहीं होता।
कठोर तपश्चर्या और त्याग से वे अपनी आत्मा को विशुद्ध बनाते हैं, अपनी आत्मा का कल्याण करते हैं। उनका जीवन स्वकल्याण के साथ-साथ परकल्याण की भावना पर आधारित होता है। पर से मतलब दूसरे व्यक्ति या मनुष्य से ही नहीं है, बल्कि हर वह प्राणी जिसे हम living being कहते हैं, से है। इन प्राणियों में वे सूक्ष्म जीव भी होते हैं जो हमें आंखों से या किसी यंत्र से भी दिखाई नहीं देते हैं। ऐसे सूक्ष्म जीवों के प्राणों की रक्षा करने के लिए, उनको जीवन दान देने के लिए, दिगंबर मुनि महाव्रत धारण करके, अनेक प्रकार के संयम, त्याग और तप द्वारा अपने को संयमित कर लेते हैं।
वर्षा ऋतु में जब धरती पर अनेक तरह के मच्छर, कीड़े- मकोड़े, ना दिखाई देने वाले सूक्ष्म जीव बहुत अधिक मात्रा में उत्पन्न होने लगते हैं। ऐसे में दिगम्बर मुनि अपने विहार अर्थात एक नगर से दूसरे नगर में जाने पर रोक लगा लेते हैं। अपना प्रवास एक नगर तक ही सीमित कर देते हैं, जिससे कि विहार के समय अचानक पैर के नीचे आने से, न दिखाई देने वाले सूक्ष्म जीवों की हिंसा ना हो जाए।
वर्षा ऋतु में दिगम्बर मुनि चार मास (श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक) एक ही स्थान पर रहकर अपनी तप-साधना करते हैं। इन चार मास तक एक ही स्थान पर ठहरने को चार्तुमास या वर्षायोग के नाम से भी जाना जाता है।
सभी जैन समाज दिगंबर मुनियों का सानिध्य पाकर अपने को भाग्यशाली मानते हैं और यदि यह सानिध्य चातुर्मास का मिल जाए तो उस समाज जैसा सौभाग्य किसी अन्य समाज का नहीं होता। इसलिए सभी क्षेत्रों के समाजों में एक होड़ लगी रहती है कि उनके क्षेत्र को मुनिजन के चातुर्मास का अवसर मिल जाए। इसके लिए महीनों पहले से ही अनेक समाज मुनिजन, गुरुजन के चरणों में श्री फल अर्पित कर, उनसे अपने क्षेत्र में चातुर्मास करने के लिए निवेदन करते हैं, अनुनय, विनय करते हैं। मुनिजन के चातुर्मास का सौभाग्य किस क्षेत्र या समाज को मिलेगा, इस निर्णय की सभी श्रावक बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं।
पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज और परम पूज्य मुनि श्री चंद्र सागर जी महाराज के चातुर्मास का सौभाग्य इस बार उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर शहर को मिला। चातुर्मास से पहले भी लॉकडाउन परिस्थितियों के कारण 11 मार्च 2020 से ही मुनिद्वय का प्रवास इस शहर में चल रहा है। जुलाई में चातुर्मास का सानिध्य भी इस शहर को ही प्राप्त हुआ। एक तरह से दो चातुर्मास जैसा सौभाग्य इस शहर को प्राप्त हुआ, ऐसा तीव्र पुण्योदय यहां के श्रावकजन का हुआ।
चातुर्मास वर्षायोग की स्थापना मुनिजन एक निश्चित तिथि पर कर लेते हैं। श्रावकगण चातुर्मास स्थापना की मंगलबेला को हर्ष और उत्साह के साथ एक समारोह के रूप में मनाते हैं। जिसे मंगल कलश स्थापना भी कहते हैं। कलश शुभ, अष्टमंगल और सकारात्मकता का प्रतीक माने जाते हैं, इसलिए इस दिन चातुर्मास प्रारंभ होने के संकल्प व प्रतीक के रूप में, मंगल कलशों की स्थापना श्रावकों द्वारा की जाती है।
4 जुलाई 2020 को मुजफ्फरनगर की जैन मिलन विहार कॉलोनी में, भक्तों द्वारा मुनिद्वय का चातुर्मास स्थापना समारोह खूब धूमधाम से मनाया गया। सकल मुजफ्फरनगर समाज की तरफ से, 14 जिनालयों की चतुर्दश वर्षायोग समिति ने, मुनिद्वय के चरणों में श्रीफल समर्पित कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। तत्पश्चात श्रावकों द्वारा चित्र अनावरण, दीप प्रज्जवलन क्रियायें संपन्न की गईं। पुण्यशाली श्रावकों ने मुनिद्वय का पाद प्रक्षालन किया और शास्त्र भेंट कर पुण्य का अर्जन किया। छोटी बालिकाओं ने बहुत सुन्दर, नृत्यमयी मंगलाचरण प्रस्तुत कर सबका मन मोह लिया। इसके बाद पूजा संगीत की मधुर ध्वनि के बीच छोटे बालक, बालिकाओं द्वारा नृत्य भक्ति करते हुए अष्ट द्रव्यों के खुबसूरत थाल मुनिद्वय के चरणों में समर्पित किए गए। इन छोटे बच्चों की नृत्य भक्ति आर्कषक प्रस्तुति रही। जैन महिला मंडल ने मधुर भजन के साथ समारोह में अपनी प्रस्तुति दी।



तत्पश्चात भक्तों को मुनिद्वय की मंगलवाणी सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पूज्य मुनि श्री ने अपने प्रवचन में मुजफ्फरनगर में चातुर्मास स्थापना को भक्तों के तीव्र पुण्य और भक्ति भावों का फल बताया, जिससे ऐसी परिस्थिति बनी कि इस नगर को चातुर्मास स्थापना का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पूज्य मुनि श्री ने समाज को एकता बनाए रखने और रावण का उदाहरण देते हुए अहंकार से दूर रहने का संदेश दिया। इसके साथ ही पूज्य मुनि श्री ने क्षेत्रवासियों को चेताया कि हम तो चार महीने के लिए आपके क्षेत्र पर सीमित रहेंगे, लेकिन आपको भी अपनी उपस्थिति निरन्तर दिखानी होगी, तभी इस चातुर्मास स्थापना का पूरा लाभ आपको मिलेगा।
अंत में भक्तों ने मंगलदीपों से भक्ति भावों में झूमते हुए मुनिद्वय की आरती की और जीवन के इस क्षण को धन्य किया। इस प्रकार चातुर्मास स्थापना का यह समारोह हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ।