जन कल्याणकारी कार्य व मार्गदर्शन

नए विचार और नए चिन्तन के साथ परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज ने अनेक तरह से मानव समुदाय का परम उपकार और कल्याण किया।

(1) अर्हं ध्यान योग

            वर्तमान समय में अनेक तरह के योग प्रचलन में हैं। पूरा विश्व योग को लेकर प्रभावित है, इस ओर आकर्षित है। योग के बारे में हमारे जिनागम के अनेक प्राचीन ग्रंथों और शास्त्रों में भी वर्णन मिलता है। प्राचीन समय से ही हमारी श्रमण परंपरा में अनेक महायोगी श्रमण हुए जिन्होंने अपने अनुभव और योग ध्यान के सूक्ष्म तत्वों का वर्णन प्राचीन महान ग्रंथों में किया। समय के साथ हम ध्यान योग की अपनी इस अमूल्य धरोहर को भूल ही गए । परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज ने प्राचीन ग्रंथों के मर्म को समझा और मानव समुदाय के लिए करुणा, दया और वात्सल्य की भावना से  इस प्राचीन ध्यान योग को “अर्हं ध्यान योग” के रूप में re-introduce कराया।

            अर्हं ध्यान  योग की यह पद्धति हमारे अंदर आत्मिक शांति के साथ-साथ, नई ऊर्जा का संचार भी करती है और हमें विश्व शांति की तरफ अग्रसर करती है।

            पूज्य मुनि श्री के अनुसार — अर्हं ध्यान योग समस्त मानव जाति के लिए है। ध्यान योग से हम अपनी वास्तविकता से परिचित हो सकते हैं। सबके मन में सुख शांति की इच्छा होती है। अर्हं ध्यान योग से व्यक्ति का मन शांत और मजबूत होता है। प्रत्येक व्यक्ति के मन में शांति हो तो  विश्व में शांति स्वयं ही आ जाएगी। ध्यान की स्थिति में मन, वचन, काय और आत्मा शुद्ध होती है। ध्यान से जब आत्मा शुद्ध होती है तो व्यक्ति परमात्मा के निकट आता है। हर व्यक्ति में अच्छा इंसान, अच्छा योगी और परमात्मा बनने की क्षमता होती है। अर्हं बीज मंत्र है जो सिद्धत्व की ओर ले जाता है। मंत्र के साथ ध्यान योग शून्य से अनंत ज्ञान, दर्शन, सुख की ओर मार्ग प्रशस्त करता है। ध्यान से ही चेतना का रूपांतरण होता है और व्यक्ति बहिरात्मा से अंतरात्मा में आता है।

            आपने अर्हं ध्यान योग के रूप में ऐसा platform मानव समुदाय को दिया जिससे भटकी हुई मानव जाति को सही राह पर लाया जा सके।  उसको शारीरिक रूप से स्वस्थ, मानसिक रूप से शांत, भावात्मक रूप से मजबूत और आध्यात्मिक रूप से उच्च स्तर पर लाया जा सके।

            एक नए concept के रुप में आपने ज्ञान के साथ ध्यान और योग को जोड़ा। आज उसी का परिणाम है कि अर्हं ध्यान योग एक अद्धितीय अभूतपूर्व योग के रुप में बहुत तेजी से प्रसिद्ध हो रहा है।  दिल्ली में लाल किले पर 2019 में आपके सानिध्य में दस हजार से भी अधिक लोगों ने एक साथ अर्हं ध्यान योग का अभ्यास किया। आज देश विदेश से, सभी आयु वर्ग के लाखों लोग अर्हं ध्यान योग से जुड़ चुके हैं और अनेक तरह से इसका लाभ ले रहे हैं।

ॐ अर्हं सोशल वेलफेयर फाउंडेशन

            आप की प्रेरणा और मंगल आर्शीवाद  से 2015 में मंदसौर, मध्य प्रदेश में “ऊँ अर्हं सोशल वेलफेयर फाउंडेशन” की स्थापना हुई। इस संस्था का  लक्ष्य विश्व शांति के लिए कार्य करते हुए, समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को जोड़ते हुए, अर्हं जीवन शैली के द्वारा, अद्भुत मानवीय क्षमताओं का विकास करना है। 

            इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए 2018 में, आपके दिल्ली चातुर्मास के समय “अर्हं टीम” का भी गठन किया गया। आज यह संस्था और अर्हं टीम कड़े परिश्रम, लगन और कुशल मैनेजमेंट के साथ अर्हं ध्यान योग को अनेक माध्यमों से जन जन तक पहुंचा रही है।

अर्हं केंद्र  (Arham centre)

            आपके मार्गदर्शन से अनेक स्थानों पर “अर्हं प्राथमिक केंद्र” और “अर्हं अनुभव केंद्र” की स्थापना की गई है। 300 से अधिक लोगों को अर्हं ध्यान योग की ट्रेनिंग देकर अर्हं अंतरप्पा (ट्रेनर) के रूप में प्रशिक्षित किया गया है। ये अर्हं अन्तरप्पा विभिन्न स्थानों पर अर्हं ध्यान योग  शिविर आयोजित करते हैं और समय-समय पर ऑनलाइन अर्हं ध्यान योग का session भी कराते हैं।

शोध कार्य

            आप की पावन प्रेरणा और मार्गदर्शन में अनेक क्षेत्रों में अर्हं ध्यान योग के प्रभाव को लेकर शोध कार्य चल रहे हैं। छात्रों के संपूर्ण विकास पर, जेल में कैदियों की मानसिकता पर और चिकित्सा क्षेत्र में अनेक रोगों पर, अर्हं ध्यान योग का क्या प्रभाव पड़ रहा है, इसके बारे में रिसर्च की जा रही  है और सभी क्षेत्रों से पॉजिटिव रिजल्ट आ रहे हैं।

(2) प्राकृत भाषा को नवजीवन

            प्राकृत हमारी प्राचीन भाषा है। प्राचीन समय में इसी भाषा को ही बोलचाल की भाषा के रूप में प्रयोग किया जाता था।  हमारे प्राचीन अमूल्य ग्रंथ भी इसी भाषा में सृजित हैं।  प्राकृत भाषा का ज्ञान होने पर ही हम अपने  जिनागम और संस्कृति के मूल्य को सही रूप में समझ सकते हैं, उनके बारे में अपने ज्ञान को बढ़ा सकते हैं और अपनी संस्कृति से परिचित हो सकते हैं। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज ने प्राकृत भाषा को जन जन तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। 

            पूज्य मुनि श्री के अनुसार प्राकृत भाषा हिंदी भाषा की जननी है। कई विदेशी भाषाओं में भी  इसके शब्दों का उपयोग देखा जाता है। हम अपने जीवन में भी बहुत से शब्द प्राकृत भाषा के ही बोलते हैं। णमोकार महामंत्र  भी इसी प्राकृत भाषा में है। यह एक सरल और कोमल भाषा है। इस भाषा को सीखने से एक ओर हम अपनी संस्कृति से जुड़ते हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे व्यवहार में प्रेम और स्नेह का विस्तार होता है।

पाइया सिक्खा पुस्तक श्रंखला

            प्राकृत भाषा को सामान्य जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से आपने “पाइया सिक्खा” नाम से प्राकृत की चार लघु पुस्तकों की रचना की। इन पुस्तकों की रचना के साथ ही, जैसे प्राकृत भाषा का भाग्य उदय हो गया और लगभग लुप्त हुई इस भाषा में  एक नए जीवन का संचार हो गया। ये पुस्तकें इतनी सरल हैं कि कोई भी व्यक्ति बड़ी सरलता से, इन के माध्यम से स्वयं अभ्यास करते हुए, प्राकृत भाषा में निपुण हो सकता है। इन लघु पुस्तकों ने प्राकृत भाषा के क्षेत्र में विकास की वह धारा प्रवाहित की जिसने आज आगे बढ़ते बढ़ते नदी का रूप ले लिया है। 

प्राकृत विद्यालय

            आपके मंगल आशीर्वाद से 2017 में  रेवाड़ी, हरियाणा में “प्राकृत जैन विद्या पाठशाला” की स्थापना की गई। शीघ्र ही यह पाठशाला हरियाणा सरकार द्वारा पंजीकृत भी हो गई। इस पाठशाला के अतिरिक्त, अन्य भिन्न स्थानों पर भी प्राकृत पाठशालायें संचालित करके प्राकृत भाषा का ज्ञान जनसाधारण को दिया जा रहा है। 

प्राकृत online पाठशाला

            प्राकृत भाषा के प्रति  लोगों की रूचि और उत्साह तेजी से बढ़ने लगा। इसी को देखते हुए आपके मार्गदर्शन से 1जनवरी 2018 से प्राकृत की ऑनलाइन पाठशालायें whatsapp groups पर शुरू की गई हैं। इन  online पाठशालाओं से  प्राकृत भाषा के क्षेत्र में एक क्रांति सी आ गई। आज देश-विदेश, सभी जगह से  हजारों लोग इन online पाठशालाओं के माध्यम से घर बैठे ही प्राकृत भाषा का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं और अपनी संस्कृति से जुड़ रहे हैं। 

            वर्तमान समय में भी आप अनेक तरह से प्राकृत भाषा के विकास के लिए प्रयत्नशील हैं और इसके लिए समाज को प्रेरित कर रहें हैं।

(3) Online पाठशाला

            ऑनलाइन प्राकृत पाठशालाओं की सफलता के साथ ही आप की पावन प्रेरणा से प्रवचनसार, द्रव्य संग्रह, वर्धमान स्तोत्र, तित्थयर भावना और तत्त्वार्थ सूत्र की ऑनलाइन पाठशाला भी संचालित की गई हैं। ये सभी स्वाध्याय पाठशाला भी अपने क्षेत्र में सफलता की पताका लहरा चुकी हैं। प्राचीन ग्रंथों का आधुनिक टेक्नोलॉजी के द्वारा सरलता से कैसे ज्ञान प्रदान किया जा सकता है, उसके लिए ये पाठशालायें एक आर्दश मॉडल के रूप में काम कर रही हैं। हजारों लोग इनके माध्यम से महान ग्रंथों का स्वाध्याय करते हुए, सरलता से ज्ञानार्जन कर रहे हैं।

(4) अंकलंक शरणालय छात्रावास

            आपके मंगल आशीर्वाद और प्रेरणा से रेवाड़ी, हरियाणा में “अंकलंक शरणालय छात्रावास” की स्थापना की गई है। इस छात्रावास में बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक शिक्षा भी प्रदान की जाती है। गुरुकुल पद्धति पर आधारित इस छात्रावास में बच्चों के बहुमुखी विकास, सुसंस्कार और उनमें प्रतिभा, कौशल व क्षमता के विस्तार पर विशेष ध्यान दिया जाता है। 

(5) विद्या प्रणम्य सात्विक रसोई

            आपने दूरदर्शी सोच के साथ समाज के परिवारों में व्याप्त एक गलत परंपरा को दूर करने के लिए, बहुत लोक कल्याणकारी समाधान समाज के सामने रखा। अशुद्धि के दिनों में महिलाओं को रसोई में भोजन ना बनाना पड़े, जिससे उनके स्वयं के और अन्य परिवारीय जन  के स्वास्थ्य की रक्षा हो सके,  इस उद्देश्य के लिए आपकी मंगलकारी प्रेरणा से दिल्ली के रोहिणी, कृष्णा नगर और मेरठ के सदर क्षेत्र में “विद्या प्रणम्य सात्विक रसोई” संचालित की गई हैं। इन सात्विक रसोइयों के  द्वारा वहां के अनेक परिवार और समाज लाभान्वित हो रहे हैं। अन्य समाजों के लिए ये सात्विक रसोई आदर्श मॉडल के रूप में प्रसिद्ध हो रही हैं।

(6) अर्हं विद्या निलय

            राजधानी दिल्ली के रोहिणी में आपके आशीर्वाद और पावन प्रेरणा से “अर्हं विद्या निलय” का कार्य निरंतर तेजी से प्रगति पर है। इस परियोजना में आधुनिक अर्हं ध्यान योग केंद्र, संत निवास, विशाल शास्त्र व स्वाध्याय कक्ष और भव्य नंदीश्वर दीप की रचना का निर्माण कार्य प्रस्तावित है।

(7) अर्हं विद्या संतनिवास

            मेरठ के पंजाबीपुरा क्षेत्र में भी संत निवास का कार्य आपके आशीर्वाद से प्रगति पर है। इस क्षेत्र पर संत निवास की आवश्यकता लंबे समय से अनुभव की जा रही थी। आप के पावन चरण इस क्षेत्र पर पड़े तो यहाँ पर सन्त निवास का यह अभाव भी दूर हो गया।

(8) महलका तीर्थ क्षेत्र विकास

            पश्चिम उत्तर प्रदेश में स्थित महलका अतिशय तीर्थ क्षेत्र पर जब आपका भव्य मंगल प्रवेश हुआ, तो ऐसा अनुभव हुआ कि आपके मंगल आगमन के साथ ही इस प्राचीन तीर्थ क्षेत्र का भाग्य भी जाग गया। आपके चिन्तन, विचारों में यह क्षेत्र ऐसा छा गया कि आपने इसके विकास की अनुपम रूपरेखा सबके सामने रख दी। जिसमें इस पूरे क्षेत्र का विकास ही नहीं हो रहा था बल्कि इसको एक नया रूप भी मिल रहा था। नवीन वेदी निर्माण,  अनुपम भव्य गंधकुटी, 24 तीर्थंकर कमल मंदिर, छात्रावास गुरुकुल का विकास आदि कार्य तीर्थ विकास की इस परियोजना में सम्मिलित हैं।

            आपका जीवन, आपका व्यक्तित्व, आपकी विलक्षण प्रतिभा, साहित्यिक योगदान और जनकल्याण की भावना सभी के लिए प्रेरणास्रोत बनती है। ज्ञान, ध्यान, तप में लीन रहते हुए  स्वकल्याण के साथ आप परकल्याण की भावना से मानव समुदाय पर जो उपकार कर रहे हैं, उस का ऋण चुकाना किसी के लिए भी असम्भव है।

            आपके जीवन, व्यक्तित्व, चरित्र से प्रभावित होकर किसी भक्त ने आपके बारे में इन पंक्तियों में बिल्कुल उपयुक्त वर्णन किया है —

जीवन पथ पर चलते चलते, गुरु मिले हमें ऐसे एक।

जैसे ध्रुव तारा हो नभ में,  तारों बीच चमकता नेक।

वाणी उनकी इतनी कोमल, जो सूरज की उजली किरण।

सुख देती जो ऐसा मन को, जैसे आया हो सावन।

संध्या में जो दिखता सागर, वैसा उनका हृदय विशाल।

अपने प्रेम के जल से जिसने, किया हमें है बहुत निहाल।

सरल हैं इतने गुरुवर हमारे, जैसे बहता झरना हो।

कंकर पत्थर सहकरकर भी, जो कल-कल बहता रहता हो।

स्वच्छ सरोवर सा मन उनका,  कमल खिले हों ऐसे भाव।

उन भावों की स्वच्छ सुगंध से, पुलकित सब भक्तों के भाव।

वो अपने में लीन हैं रहते, भक्त रहें उनमें लवलीन।

मुक्ति पथ के राही वो तो, चलते होने को स्वाधीन।।