
प्रायः ऐसा कहा जाता है कि जैन संत, जैन मुनि तो पावन नदी की उस धारा की तरह होते हैं, जिनको किसी भी स्थान पर रोका नहीं जा सकता, किंतु फिर भी हम देखते हैं कि प्रत्येक वर्ष में चार माह ऐसे भी आते हैं, जब इस पावन नदी की धारा को भी भक्तों का तीव्र पुण्योदय, परम सौभाग्य, उत्कृष्ट भक्ति भाव, श्रद्धा एवं समर्पण– चतुर्मास रूपी बांध को बना कर रोक ही लेते हैं।
परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज एवं मुनि श्री चन्द्र सागर जी महाराज की विहार रूपी पावन नदी की धारा, दिल्ली से आगरा, आगरा से कुंडलपुर, उसके बाद अनेक स्थानों नोहटा, कटंगी, जबलपुर से प्रवाहित होते हुए, अतिशय तीर्थ क्षेत्र पनागर में आकर आखिर रुक ही गई। पनागर जबलपुर से 15 किलोमीटर की दूरी पर बसा एक छोटा सा नगर है, किन्तु अतिशय और सौभाग्य की दृष्टि से, यह नगर बहुत बड़ा बन गया है। यहां पर स्थित देवाधिदेव श्री 1008 शांतिनाथ भगवान और पार्श्वनाथ भगवान का अतिशयकारी प्राचीन भव्य जिनालय सभी के हृदय कोअसीम शांति से भर देता है।
शहरों के प्रदूषण और कोलाहल से दूर, शांत वातावरण में बसा यह क्षेत्र आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के चरण कमलों एवं सानिध्य से भी अनेक बार पावन हो चुका है। एक बार नहीं, अपितु 5 बार (1984,1988,1992, 2004, 2011) इस नगर को आचार्य श्री के शीतकालीन प्रवास का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। इस नगर की पावन धरा पर निश्चित ही, ऐसी शुभ वर्गणायें और अध्यात्मिक संस्कारों की धरोहर स्थित है कि एक नहीं, बल्कि चार चार मुनिराज इस नगर से जैन समाज को प्राप्त हुए और आज निर्यापक श्रमण मुनि श्री संभव सागर जी महाराज, मुनि श्री निष्पक्ष सागर जी महाराज, मुनि श्री निस्पृह सागर जी महाराज एवं मुनि श्री निभ्रांत सागर जी महाराज के रूप में आचार्य श्री के संघ की शोभा बढ़ा रहे हैं।
पनागर नगर के इन महान पुण्यों की सूची में, सौभाग्य का एक और नया अध्याय जुड़ा, जब 10 जुलाई 2022 को पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज एवं चन्द्र सागर जी महाराज का चार्तुमास के लिए, यहां भव्य मंगल प्रवेश हुआ। मंगल प्रवेश के साथ ही भक्तों के हृदय में उत्साह और उल्लास की तरंगें प्रवाहित होने लगीं।
इसी क्रम में 13 जुलाई 2022 को गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर मंगल चार्तुमास कलश स्थापना का आयोजन किया गया। आयोजन में दूर-दूर से दिल्ली, मुजफ्फरनगर,आगरा आदि अनेक स्थानों से भी भक्तों के समूह मुनिद्वय के चरणों में भक्ति सुमन चढ़ाने पहुंचे। मंच पर मुनिद्वय के विराजमान होते ही भक्तों का ह्रदय प्रफुल्लित हो उठा। ध्वजारोहण, दीप प्रज्जवलन, शास्त्र भेंट आदि मांगलिक क्रियाओं द्वारा कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। द्वय मुनिराज के पाद प्रक्षालन द्वारा दिल्ली, मुजफ्फरनगर, जबलपुर के भक्तों ने अपने को धन्य किया।
मंच की colourful theme, द्वय मुनिराज का सानिध्य, उनके आभामण्डल का तेज और रंग बिरंगी पोशाकों में उपस्थित भक्तों के समूह से, पूरे पंडाल की शोभा ही निराली हो गई थी। ऐसी अनुभूति हो रही थी जैसे किसी देवलोक में ही यह दिव्य, भव्य, अलौकिक कार्यक्रम हो रहा है।






मंच पर मुनिराज के समक्ष सुशोभित सुन्दर कमलों को देखकर, ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे सूर्य के उदय के साथ ही कमल खिल जाते हैं वैसे ही सूर्य के समान आभामंडल वाले मुनिराज के दर्शन से, यहां एक नहीं, अपितु पाँच पाँच मनोरम कमल खिल गए हों। मंच पर प्रयोग हुए सुनहरे पीले केसरिया रंगों की theme से ऐसा लग रहा था, सूर्योदय के समय जिस प्रकार आकाश में सुनहरी लालिमा छा जाती है वैसे ही मुनिराज के सूर्य के समान तेज आभामंडल के प्रभाव से ही, यह आकर्षक रंग यहां प्रकट हो गए हों। मंच की पृष्ठभूमि पर निर्मित दो हाथियों की आकृति को देखकर, यह लग रहा था कि ये भी प्रसन्न होकर मुनिराज के दर्शन पूजन करने यहां आ गए हैं। मंच से थोड़ा सा नीचे श्वेत, स्वर्ण आभा वाले कलशों की पंक्तियां, ऐसे आभासित हो रही थीं जैसे देवताओं द्वारा कलशों के रूप में दिव्य उपहार मुनिराज के चरणों में समर्पित किए गए हों। यह संपूर्ण नजारा नेत्रों को आकर्षित ही नहीं कर रहा था बल्कि मन को भी सुख की अनुभूति करवा रहा था।
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कार्यक्रम में निकलंक शरणालय के बच्चों ने, ॐ अर्हं बोल,– भजन के द्वारा अपनी प्रस्तुति दी। उसके बाद महिला मंडल द्वारा णमोकार मंत्र प्यारा– आदि भजनों पर सुन्दर नृत्य प्रस्तुत किया गया। इसके पश्चात आचार्य श्री के पूजन का आयोजन हुआ। बालिका मंडल ने आचार्य श्री के गुणों की स्तुति, गौरव गाथा और पूजन को, नृत्य एवं नृत्य नाटिका के माध्यम से आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया। यह प्रस्तुति बहुत ही मनमोहक और सराहनीय रही। तत्पश्चात सभी भक्तों ने पूज्य मुनिद्वय की पूजा के लिए अर्ध्य समर्पित किए। अमित जी और राजेश कटंगहा (पंपी) जी द्वारा कार्यक्रम का सफल संचालन किया गया। कार्यक्रम में चार प्रकार के कलश स्थापित करने का भक्तों को पुण्य लाभ मिला। प्रथम कलश स्थापित करने का सौभाग्य पनागर नगर के ही समाज प्रमुख राजेश कंटगहा जी परिवार ने प्राप्त किया। सभी अन्य पुण्यशाली भक्तों ने भी बड़े उत्साह से, अपने कलशों को स्थापित करके, अपने को इस चातुर्मास में सहभागी बनाया।
इसके पश्चात समय था, उस कार्यक्रम का जिसकी भक्तों को बेसब्री से प्रतीक्षा रहती है। पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज की अमृतमयी वाणी जैसे ही प्रारम्भ हुई, भक्तों के कानों में मधुर रस ही घुलने लगा। पूज्य मुनि श्री ने कहा आज के डिजिटल युग में भक्त मुनिराज पर पूरी नजर रखते हैं, कब कहां किस नगर में जा रहे हैं, किस ओर जा रहे हैं, चातुर्मास का अनुमान लगाते हैं, कहां पर हो सकता है, पर हम वहीं चातुर्मास करते हैं जहाँ हमारे गुरु महाराज संकेत देते हैं।
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आज के पंचम काल में दो तरह से चातुर्मास की स्थापना होती है- एक मुनिराज द्वारा और दूसरी श्रावकों द्वारा। आज की यह चातुर्मास कलश स्थापना, आप श्रावकों की तरफ से की जाने वाली स्थापना है। मुनिश्री ने आगे कहा- कि चातुर्मास के दिनों में श्रावकों को भी नगर से बाहर अपने गमनागमन पर थोड़ा नियंत्रण लगाना चाहिए। यह धर्म दया, संयम एवं अहिंसा का धर्म है। इनका पालन करना श्रावकों के लिए भी आवश्यक है। तप, संयम साधना, दया का पालन करने वाले मुनिराजों की सेवा में तो देव सदैव तत्पर रहते ही हैं, दया अहिंसा का पालन करने वाले श्रावकों को भी, देव प्रणाम और नमस्कार करते हैं, सहयोग करते हैं। इसका एक सुंदर उदाहरण भी मुनि श्री ने दिया। मुनि श्री ने बताया -बिना किसी के कहे हुए, अपने मन से दिया गया दान ही सर्वश्रेष्ठ दान होता है। पूज्य मुनि श्री ने आगे कहा- पनागर नगर से चार मुनिराज एवं अनेक ब्रह्मचारी भैय्या जी व बहनें आचार्यश्री के संघ के लिये समर्पित हुए हैं, उसी का आज ये gift, पनागर नगरवासियों को मिला कि गुरु महाराज ने हमें यहां चातुर्मास करने का आदेश दिया। अंत में गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर, पूज्य मुनि श्री ने ग्रीष्म की धूप में– भजन की पंक्तियां अपने गुरु महाराज और दादा गुरु महाराज के लिए समर्पित की। जिसे सुनकर भक्तजन भावविभोर हो उठे।
इस प्रकार चातुर्मास कलश स्थापना का यह कार्यक्रम बहुत ही हर्षोल्लास और आनंद के साथ संपन्न हुआ।