तित्थयर भावणा

Online पाठशाला

द्रव्य संग्रह और वर्धमान स्तोत्र Online स्वाध्याय पाठशाला की अपार सफलता के बाद प्राकृत टीम द्वारा,  तित्थयर भावणा ग्रंथ पर Online स्वाध्याय पाठशाला प्रारम्भ की गई । परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज द्वारा रचित, यह तित्थयर भावणा ग्रन्थ, सोलहकारण भावनाओं पर प्राकृत भाषा में रचित सर्वप्रथम ग्रन्थ है।

भावनाओं का हमारे जीवन बहुत महत्व होता है। कहा भी जाता है, भावना भव नाशनि.. हमारी भावनाओं में इतनी शक्ति होती है कि वे जीव को जन्म मरण के बन्धन से मुक्त करा देती हैं और उसे सर्वोत्कृष्ट तीर्थंकर पद तक भी पहुंचा देती हैं। वहीं दूसरी ओर कहा जाता है, भाव शून्य सब बेकारा.. अर्थात भाव शून्य क्रियायें निरर्थक ही रह जाती हैं।

 सुनकर बहुत आश्चर्य होता है, क्या कोई सामान्य व्यक्ति भी ऐसी भावना भा सकता है जिससे उसका ऐसा प्रबल भाग्य बन जाए कि वह स्वयं एक दिन तीर्थंकर भगवान बन जाएं । क्या भावना में इतनी शक्ति होती है कि जिन तीर्थंकर भगवान की हम आज पूजा अर्चना करते हैं, एक दिन हम भी उन्हीं के समान बन जाएं? उत्तर होगा.. हां, भावनाओं में ऐसी शक्ति है, पर यह शक्ति तभी आएगी जब हम उन भावनाओं के बारे में जानेंगे, केवल जानेंगे ही नहीं, उनको अच्छी तरह से समझेंगे और समझ कर चिंतन में ला सकेंगे।

  तीर्थंकर नाम कर्म प्रकृति का बन्ध कराने वाली 16 भावनाएं होती हैं, जिन्हें सोलहकारण भावनाओं के नाम से जाना जाता है। परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद और पावन प्रेरणा से, प्राकृत टीम द्वारा संचालित  तित्थयर भावणा स्वाध्याय पाठशाला में इन्हीं भावनाओं के बारे में जानने,समझने एवं चिन्तन करने का शुभ अवसर श्रावकों को प्राप्त हुआ । इस पाठशाला की अनेक ऐसी विशेषताएं थी जिसने अध्ययन एवं स्वाध्याय को रोचक बना दिया ..

(1) सर्वप्रथम इस पाठशाला में तित्थयर भावना ग्रंथ के रचयिता, पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज के श्री मुख से ही, तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध कराने वाली इन 16 भावनाओं को श्रवण करने और समझने का सौभाग्य श्रावकों को प्राप्त हुआ। जब ग्रंथ के रचयिता द्वारा ही, उस ग्रंथ पर वाचना एवं प्रवचन होते हैं तो उसका आनंद ही अलग हो जाता है। ग्रंथ लेखन के समय, रचयिता के हृदय में रहे सूक्ष्म भावों से भी श्रोतागण लाभान्वित हो जाते हैं और विषय सरलता से स्पष्ट होता जाता है।

(2) ग्रंथ में प्राकृत गाथाओं में सोलहकारण भावनाओं का वर्णन है जिससे विद्यार्थियों को स्वाध्याय के साथ-साथ, प्राकृत भाषा का ज्ञान भी सहजता से होता जाता है।

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(3) स्वाध्याय में 16 भावनाओं पर रचित सुन्दर हिंदी पद्यों को भी पूज्य मुनि श्री की मधुर वाणी में श्रवण करने का सुअवसर प्राप्त हुआ जिससे विषय और अधिक आकर्षक बना दिया ।

 (4) स्वाध्याय को विद्यार्थियों के लिये सरल एवं रुचिकर बनाने के लिये प्राकृत टीम बहुत परिश्रम करती है। प्रतिदिन विद्यार्थियों को स्वाध्याय के लिये audio, video, लिखित सामग्री एवं कंठस्थ करने के लिये प्राकृत गाथा, समय पर उपलब्ध करा दी जाती थी। इसके साथ ही प्रतिदिन एक विशेष प्रश्न, लिखित उत्तर देने के लिये चार अन्य प्रश्न और एक अभ्यास पेपर भी दिया जाता था जिससे  विद्यार्थियों को अपना मूल्याकंन करने का अवसर मिल जाता है।

(5) स्वाध्याय पाठशाला कक्षा में इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि विद्यार्थियों पर एक समय में ही स्वाध्याय कार्य का ज्यादा बोझ न आ जाए, इसलिए यदि लिखित विषय सामग्री का content कभी ज्यादा हो  जाता था तो उन्हें एक दिन अतिरिक्त समय दे दिया जाता था। त्यौहार आदि के समय पर भी पाठशाला में विद्यार्थियों के लिए पर्याप्त अवकाश रख कर इस बात का पूरा ध्यान रखा गया। 

(6) इतना ही नहीं स्वाध्याय कराने के लिये प्राकृत टीम teacher के साथ साथ tutor की भूमिका में भी नजर आती है। विषय को स्मृति में बनाए रखने के लिये समय समय पर revision test और परीक्षा ली जाती है और इसके लिये Tutor की तरह विद्यार्थियों की सहायता की जाती है। छोटे- छोटे सुन्दर video बनाकर विषय को उनकी स्मृति में गहराई से बैठाया जाता है और धीरे धीरे विद्यार्थियों को मनोवैज्ञानिक रूप से सभी test और परीक्षा के लिये तैयार कर दिया जाता है।

 (7) स्वाध्याय पाठशाला में Monday से Thursday 4 दिन स्वाध्याय हुआ , Friday को revision और 2 दिन अवकाश रहता था , जिसके कारण विद्यार्थियों को स्वाध्याय करने के लिए पर्याप्त समय मिला। 

(8) पाठशाला में विद्यार्थियों के motivation के लिए gifts और prizes की तो जैसे बौछार ही होती रही। प्रतिदिन विशेष प्रश्न का उत्तर देने वाले सदस्य को तो पुरुस्कार मिला ही, अभ्यास पत्र भरने वाले सदस्यों को भी आकर्षक उपहार प्रदान किए गए। केवल प्रथम, द्वितीय.. आदि ही नहीं, बल्कि कभी-कभी भाग्यशाली विजेताओं का चुनाव कर उनको भी आर्कषक उपहार दिए गए। नई नई स्कीम द्वारा विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया जाता रहा और यह सभी उपहार उनके घर पर कोरियर से पहुंचा दिए गए। 

       निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है, अनेक तरह की नई टेक्निक, skills और आधुनिक साधनों का उपयोग करके यह ऑनलाइन पाठशाला क्रियान्वित की गई। स्वाध्याय करने वाले विद्यार्थियों ने इस पाठशाला में नया ज्ञान अर्जित किया और तीर्थंकर नाम कर्म प्रकृति के लिए आवश्यक भावनाएं कैसे भायी जाती हैं, इसका अभ्यास किया।

नोट- यह स्वाध्याय पाठशाला पूर्ण हो गई है लेकिन इसकी कक्षाएं वर्तमान समय में भी उपलब्ध हैं।

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