चातुर्मास कलश स्थापना समारोह (2021)

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         ग्रीष्म ऋतु के बाद किसान को अपनी फसल के लिए मानसून का इंतजार रहता है, सामान्य जन को तेज गर्मी से राहत के लिए वर्षा का इंतजार रहता है, तो दूसरी तरफ जैन श्रावक जन को अपने संतो के चातुर्मास का इंतजार रहता है।

      बहुत सौभाग्यशाली होते हैं वह नगर, जिनको साधु संतों का चातुर्मास कराने का सौभाग्य प्राप्त होता है । विभिन्न स्थानों के श्रावकजन अपने नगर में संतों का चातुर्मास कराने के लिए बहुत पहले से ही प्रयास आरम्भ कर देते  हैं। 2021 का चातुर्मास और आगरा शहर, यह दोनों नाम, जैन श्रावकों को लंबे समय तक याद रहेंगे क्योंकि  इस वर्ष संत शिरोमणि आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के एक नहीं बल्कि दो उपसघों (पांच मुनिराज) का चातुर्मास एक साथ कराने का सौभाग्य, इस नगर को मिला है।

         चातुर्मास की घोषणा होते ही भक्तों को सबसे ज्यादा प्रतीक्षा होती है, चतुर्मास कलश स्थापना के दिवस की। हो भी क्यों ना, इस दिन उनके मन और हृदय में संतों का सानिध्य मिलने से जो खुशी की लहरें उठ रही होती है, उनको ही वे इस दिन उत्सव मनाकर प्रकट करते हैं।

         परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज एवं पूज्य मुनि श्री चन्द्र सागर जी महाराज के वर्षा योग 2021 का कलश स्थापना समारोह 1 अगस्त को आगरा नगर में धूमधाम से आयोजित किया गया।

         सभी नगर वासियों और दूर स्थानों के भक्तों को इस दिन का बेसब्री से इंतजार था। सभी भक्तजन इस अवसर पर पहुंचे और समारोह स्थल पर भक्तों का जैसे जनसैलाब  ही उमड़ पड़ा। कार्यक्रम स्थल पर निर्मित मंच की शोभा देखते ही बनती थी, बताया गया कि कुंडलपुर में निर्मित मंदिर के जैसा ही आभास देने वाला मंच का यह रूप बनाया गया है। बात सत्य थी, मंच किसी मंदिर से कम नहीं लग रहा था, बस वहां भगवान की कमी लग रही थी जैसे ही दोनों मुनिराज मंच पर विराजमान हुए, वह कमी भी दूर हो गई। दूर से नजारा ऐसा लग रहा था जैसे किसी मंदिर में साक्षात दो भगवानों के दर्शन हो रहे हों। यह सुंदर नजारा निश्चित ही अविस्मरणीय रहेगा।

         मंच के आगे सुन्दर कलाकृति में शोभायमान कलश  सबके आकर्षण का केंद्र बने हुए थे। मंच के पीछे व आगे कलाकृतियो में कमल खिले नजर आ रहे थे तो पंडाल में भक्तों के मन कमल की तरह खिले हुए प्रतीत हो रहे थे।

         दोनों मुनिराजों के मंच पर आते ही पंडाल जयकारों से गूंज उठा। विशाल पंडाल ऐसा लग रहा था जैसे किसी मंदिर का प्रांगण हो और वहां भक्त उत्सव मना रहे हों। महिला मंडल द्वारा सुन्दर मंगलाचरण किया गया। इसके बाद दीप प्रज्जवलन, पाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट आदि मांगलिक कार्य संपन्न हुए। गुरु पूजन में सिरसागंज, मेरठ, मुजफ्फरनगर टूंडला, मथुरा, गोटेगांव, जबलपुर, उज्जैन आदि स्थानों के भक्तों ने गुरुचरणों में अपने भक्तिभावों को समर्पित किया।

         इस शुभ अवसर पर हरिद्वार से आए पंडित मनोहर लाल जी आर्य द्वारा लिखित पुस्तक प्रणम्यमुनि गौरव शतकम्  का विमोचन भी किया गया। आदरणीय पंडित जी ने बताया जब पहली बार उन्होंने  पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज के दर्शन किए तो उनकी तेजस्वी, भव्य मुख आभा ने इतना प्रभावित किया कि लगा उनके चरणों में ही जीवन समर्पित कर दूँ। उन्होंने पूज्य मुनिश्री के व्यक्तित्व एवं साहित्य के बारे में सुन्दर शब्दों में अपने भावों को व्यक्त किया।

         इसके पश्चात बालिकाओं द्वारा सुन्दर नृत्य प्रस्तुत किया गया। अर्हं टीम ने स्वस्थ तन, प्रसन्न मन, निर्मल चेतन और विश्व शांति के लिए अर्हं ध्यान एवं योग का क्या महत्व है, इसके बारे में जन समुदाय को सुन्दर Presentation  दिया। इसके बाद मंगल कलश स्थापना का पावन कार्य संपन्न हुआ। मनोज जैन जी और मुकेश जी एक टीम की तरह समय और सभी का ध्यान रखते हुए मंच संचालन को बहुत कुशलता से संभाल रहे थे।

         अन्त में वह घड़ी आई जिसका वहां उपस्थित भक्तों को बेसब्री से इंतजार था। यह समय था, मुनिद्वय के प्रवचन का, पूज्य मुनि श्री चन्द्र सागर जी महाराज ने अपने सम्बोधन में कहा — जो आनन्द धर्म के भाव और गुरु के सानिध्य में मिलता है, वह कभी नहीं छूटता। आचार्य श्री के बारे में संस्मरण सुनाते हुए वैय्यावृति के महत्व और उस समय क्या ध्यान रखना है, इस बारे में श्रावकों का मार्गदर्शन किया।

         परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज के सम्बोधन का समय आते ही भक्तों के चेहरे खिल उठे। पूज्य मुनि श्री के श्री मुख से निकलने वाले शब्दों को सुनने के लिए वे उत्साह से भर गए। पूज्य मुनि श्री ने कहा आगरा के भक्तों का प्रकृति भी अनुकूल बनकर साथ दे रही है। यदि भक्तों में ऐसा ही उत्साह रहा तो यह चार्तुमास एक ऐतिहासिक  चार्तुमास बन जाएगा। मुनि श्री ने शेर सुनाकर भक्तों का दिल जीत लिया, सजदा अर्थ बताते हुए, उन्होंने कहा — हम सजदा अपने लिए नही, दूसरों के हित के लिए भी करते हैं। हम तो चाहते हैं सभी ऐसे कार्य करें जिससे सभी को अगले जन्म में स्वर्ग में entry मिले। हमारा कार्य Motivate करना है। पूजा विधान तो हम करते रहते हैं और जितना पुण्य उनसे मिलता है, उससे ज्यादा ध्यान में मन को एकाग्र करने से मिलता है। अर्हं शब्द में पच परमेष्ठी की ऊर्जा समाहित है। हम सभी को आत्मा का ज्ञान देना चाहते हैं जिससे उनके कर्मों की निर्जरा हो और आत्मा की शुद्धि हो। ध्यान से आत्मा के अंदर बहुत लाभ होते हैं। सम्बोधन के अन्त में पूज्य मुनि श्री के मुख से, ऊं अर्हं बोल, भजन सुनकर भक्तजन झूम उठे।

         इस प्रकार चातुर्मास मंगल कलश स्थापना का यह पावन समारोह विशाल जनसमुदाय के मध्य सानन्द और हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ।

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