पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव

पार्श्वपुरी (पश्चिमपुरी), आगरा

पार्श्व कथा के सातिशय पुण्य का हुआ ये चमत्कार,

आगरा को मिला पार्श्वप्रभु के जिनालय का उपहार।   

मुनिद्वय के चार्तुमास की अनमोल यादगार,

पार्श्वपुरी जिनालय के पार्श्वप्रभु की जय जयकार।

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       अपने जीवन में अनेक तरह के उत्सव, समारोह, जश्न आदि हम मनाते रहते हैं, उनमें भाग लेते रहते हैं। सांसारिक उत्सवों से अलग हटकर आध्यात्मिक व धार्मिक क्षेत्र में भी अनेक तरह के उत्सव, महोत्सव, समारोह आदि मनाने की परंपरा प्राचीन काल से ही हमारी संस्कृति में रही है। धार्मिक, आध्यात्मिक उत्सव-समारोह जहाँ एक तरफ व्यक्ति के पुण्य संचय में वृद्धि करते हैं, वहीं दूसरी ओर, उसके ज्ञान एवं विचारों को भी विस्तार और सकारात्मकता से भर देते हैं।

    पंचकल्याणक महोत्सव,अध्यात्मिक उत्सवों में  सबसे अधिक प्रसिद्ध और सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। यह पंचकल्याणक महोत्सव 5 दिन तक चलने वाली वह प्रक्रिया है जो जन सामान्य को बहुत सरल रूप से यह समझा देती है कि एक पाषाण प्रतिमा कैसे भगवान के रूप में रूपांतरित हो जाती है। यह वह चमत्कारिक प्रक्रिया है जो एक पाषाण को जगत पूज्य भगवान के रूप में परिवर्तित कर देती है। कहा जाता है, तीर्थंकर भगवान के  पंचकल्याणक इतना अतिशय पुण्य देने वाले होते हैं कि हजार कार्य छोड़ कर भी इस प्रक्रिया में, उत्सव में अवश्य सम्मिलित होना चाहिए।

    जनसामान्य का परम सौभाग्य होता है जब उन्हें पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है। ऐसा ही सौभाग्य आगरा के श्रावकों को प्राप्त हुआ जब उन्हें आगरा के पश्चिमपुरी में परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज एवं पूज्य मुनि श्री चन्द्र सागर जी महाराज के सानिध्य में आयोजित होने वाले श्री 1008 चिंतामणि भगवान पार्श्वनाथ जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव एवं विश्वशान्ति महायज्ञ में सम्मिलित होने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ। यह पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव 15 नवंबर से 20 नवंबर तक की अवधि में, बहुत धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ। 

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गर्भ कल्याणक पूर्व रूप

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गर्भ कल्याणक उतर रूप

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जन्म कल्याणक

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तप कल्याणक

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पिच्छिका परिवर्तन समारोह

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ज्ञान कल्याणक

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मोक्ष कल्याणक

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   अपनी ओजस्वी वाणी और विस्तृत ज्ञान से भक्तों को चुंबक की तरह आकर्षित कर लेने वाले परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्यसागर जी महाराज एवं वात्सल्य, समता की मूर्ति पूज्य मुनि श्री चंद्र सागर जी महाराज के पावन सानिध्य, विख्यात प्रतिष्ठाचार्य पंडित श्री विनोद कुमार जी सनत कुमार जी जैन के कुशल नेतृत्व व दिशा निर्देश, पंडित मुकेश जैन शास्त्री के उत्तम मार्गदर्शन, मनोज जैन जी के मंच संचालन, राहुल जैन जी जैसे युवा व कर्मठ सौधर्म इंद्र, अन्य सभी समर्पित इन्द्रगण व पात्र, माता-पिता, कुबेर व अन्य सभी पात्रों के सुन्दरअभिनय, संगीतकार और कलाकारों की उत्कृष्ट प्रस्तुति, व्यवस्था संभालने वाली पंचकल्याणक समिति के सदस्यों के कठिन परिश्रम और भक्तों के अनुशासन ने इस पंचकल्याणक महोत्सव की शोभा में चार चांद ही लगा दिए।

  इन सभी सुन्दर विशेषताओं के अतिरिक्त, कुछ अन्य विलक्षण विशेषतायें भी इस पंचकल्याणक महामहोत्सव की रहीं, जिनके कारण यह पंचकल्याणक प्रतिष्ठा ही अनोखी बन गई और जिनके बारे में जानकर प्रत्येक व्यक्ति उत्साह एवं गर्व से भर कर आनन्दित हो जाता है।

 ये विलक्षण विशेषताएं हैं–

 (1) जिनालय निर्माण से पूर्व ही  जिन प्रतिमा हुई विराजमान —

        सामान्यतः देखा जाता है, पहले मंदिर का निर्माण होता है फिर भगवान की प्रतिमा के पंचकल्याणक होते हैं और उसके बाद मन्दिर में जिन प्रतिमायें स्थापित होती हैं। लेकिन यहां पंचकल्याणक पहले हुए, जिन प्रतिमायें उस पावन भूमि पर बने अस्थायी निर्माण में विराजमान हुईं और अब भगवान के समक्ष ही या ये कहें, भगवान के सानिध्य में ही वहाँ अतिशयकारी जिनालय का निर्माण होगा।

  (2) लघु अवधि में सभी कार्य संपन्न —

  5 अक्टूबर 2021 को आगरा के सेक्टर 7 में कुछ श्रावक श्रेष्ठियों ने पश्चिमपुरी क्षेत्र में जिन मंदिर के लिये, पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महराज के समक्ष अपने विचार व्यक्त किये और अगले ही दिन, 6 अक्टूबर को चमत्कारिक रूप से, इस क्षेत्र पर पूज्य मुनि श्री के सानिध्य में जिन मन्दिर का शिलान्यास भी हो गया, तो 20 नवंबर 2021 तक पंचकल्याणक भी सम्पन्न हो गए और यहां के भक्तों को  जिन भगवान के दर्शन इतनी शीघ्र उपलब्ध हुए, ऐसा अतिशय इस स्थान की पावन भूमि का रहा।

(3) अतिशयकारी जिनप्रतिमा —

        पंचकल्याणक में प्रतिष्ठित मूलनायक श्री 1008 चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा ऐसी अतिशयकारी प्रतीत हो रही थी, जैसे कहीं से प्रकट हो गई हो। भगवान के मुखमण्डल की आभा ऐसी प्रसन्नता बिखेरती है कि उनके दर्शन कर भक्तों का हृदय भी प्रसन्नता से भर जाता है। पार्श्वनाथ भगवान की इस तरह की अनूठी प्रतिमा कम ही देखने को मिलती है। भगवान की पहली शांति धारा करने का भक्तों में जो उत्साह दिखा, वह भी इस प्रतिमा के अतिशय को ही दर्शा रहा था। पार्श्व प्रभु की यह अतिशयकारी प्रतिमा निश्चित ही भविष्य में इस क्षेत्र पर अनेक अतिशय कराएगी, ऐसे शुभ संकेत, वहां भगवान के दर्शन कर आभासित होते हैं।

 (4) पाषाण निर्मित जिनालय —

        पार्श्व प्रभु का, उन्हीं की प्रतिमा के सानिध्य में बनने वाला यह जिनालय सीमेन्ट कंक्रीट से नहीं, बल्कि पाषाण से निर्मित होगा। इसके साथ ही जिनालय के निर्माण में कुएं के छने हुए जल का प्रयोग किया जायेगा। ये दोनों विशेषताएं, निश्चित ही आगरा में इस जिनालय को अभूतपूर्व जिनालय के रूप में स्थापित करेंगी।

 (5) पंचकल्याणक में अतिशय —

        वर्षा ऋतु का समय नहीं था फिर भी पंचकल्याणक में जल वर्षा हुई। जल वर्षा भी उस समय हुई, जब ज्ञान कल्याणक के समय, जिन प्रतिमाओं को पूज्य मुनि श्री द्वारा सूर्य मंत्र देखकर प्रतिष्ठित किया गया और भगवान के मोक्ष कल्याणक के समय भी हल्की जल वर्षा हुई, पर इस वर्षा से उत्सव में कहीं भी कोई बाधा नहीं आई। यह हल्की-हल्की जल वर्षा इस बात के संकेत दे रही थी कि देवतागण इस उत्सव से प्रसन्न हो गए हैं और हल्की जल वर्षा के रूप में अपनी उपस्थिति व प्रसन्नता व्यक्त कर रहे हैं।

 (6) भक्तों के पुण्य का अतिशय —

        पश्चिमपुरी क्षेत्र में रहने वाले भक्तों ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उन्हें इतनी जल्दी अतिशयकारी जिन प्रतिमा के रूप में पार्श्व प्रभु के दर्शन सुलभ होंगे पर यह चमत्कार हुआ। यह उनके तीव्र पुण्य का ही अतिशय रहा उन्हें दिव्य जिनप्रतिमाओं के रुप में बहुत बड़ा उपहार ही जैसे प्राप्त हुआ ।

        निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं, जिस पावन धरा पर जिनमंदिर निर्मित होगा वह भूमि भी अतिशयकारी है, पार्श्व प्रभु की प्रतिमा भी अतिशयकारी है,  उनके पंचकल्याणक भी अतिशयकारी रहे और भविष्य में निर्मित होने वाला जिनालय भी अतिशयकारी होगा जो आगरा ही नहीं, दूर-दूर के भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करेगा।