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अर्हं चंद्रांचल अतिशय क्षेत्र महलका

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भगवान के दर्शन पूजन के लिए मंदिरों और जिनालयों का निर्माण किया जाता है। सभी समाज अपने क्षेत्रों पर मंदिर, जिनालयों का निर्माण कराते हैं, जिससे वहाँ रहने वाले श्रावकों को सुगमता से देव दर्शन मिल सकें। इन सभी जिनालयों के अतिरिक्त कुछ ऐसे क्षेत्र भी होते हैं, जिन्हें तीर्थ क्षेत्र कहा जाता है। इन तीर्थ क्षेत्रों पर भी मंदिरों जिनालयों को निर्मित किया जाता है।
तीर्थ क्षेत्रों का अपना अलग इतिहास होता है, महिमा होती है, इसलिये ये तीर्थ क्षेत्र समाज के क्षेत्रों में स्थित जिनालयों से अलग विशिष्टता लिए होते हैं। कुछ तीर्थ क्षेत्र अतिशय तीर्थ क्षेत्र कहलाते हैं। उनकी स्थापना ही किसी ना किसी अतिशय, चमत्कार के कारण या उसके बाद होती है और समय-समय पर वहां पर कोई ना कोई अतिशय होते रहते हैं।
महलका तीर्थ क्षेत्र — ऐसा ही एक अतिशयकारी तीर्थ क्षेत्र है — तीर्थ क्षेत्र महलका। यह तीर्थ क्षेत्र उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित है। इस क्षेत्र पर श्री 1008 चंद्रप्रभु भगवान की अतिशयकारी प्रतिमा विराजमान है।
अतिशय का इतिहास — महलका तीर्थ क्षेत्र से 20 किलोमीटर दूर एक छोटा सा नगर है सरधना। इस नगर में अंग्रेजों के शासन काल के समय, आज से लगभग 180 वर्ष पूर्व बेगम सुमरू का राज्य था। सरधना के पास गंग नहर में खुदाई के दौरान एक दिन चतुर्थ कालीन पद्मासन चंद्रप्रभु भगवान की श्वेत वर्ण वाली पाषाण प्रतिमा जी प्राप्त हुईं। बेगम सुमरू को उनके सलाहकार, निमित्तज्ञानी ज्योतिष ने उस प्रतिमा के बारे में बताया कि यह प्रतिमा जिस क्षेत्र पर रहेगी, वहां पर जैन लोगों का राज्य होगा। इस बात से घबराकर बेगम सुमरू ने जैन समाज के लोगों को बुलाया और प्रतिमा जी को उसके राज्य से दूर ले जाने के लिए कहा। जैन समाज के लोग प्रतिमा को बैलगाड़ी में विराजमान करके हस्तिनापुर के लिए निकले लेकिन रात हो जाने के कारण वह रास्ते में गांव महलका में स्थित पारसनाथ भगवान के चैत्यालय में रुक गए।
सुबह होने पर जब वे लोग हस्तिनापुर के लिए प्रस्थान करने लगे तो बैलगाड़ी अपनी जगह से नहीं हिली। काफी प्रयास किया गया पर बैलगाड़ी टस से मस नहीं हुई। उसी दिन रात को स्वप्न हुआ कि — मेरा मंदिर यहीं बनाओ। अगले दिन प्रतिमा जी को चैत्यालय में विराजमान करने के लिए जैसे ही उठाया, प्रतिमा जी फूल की तरह हल्की हो गईं। प्रतिमा जी के चैत्यालय में विराजमान होने के बाद यहां 95 फुट ऊंचे शिखर वाले विशाल मंदिर का निर्माण हुआ और यह क्षेत्र अतिशय क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
चंद्रप्रभु भगवान की अतिशयकारी प्रतिमा के चमत्कार अतिशय की चर्चा अन्य जगहों पर भी होने लगी तो भक्तों के समूह इस क्षेत्र की ओर आकर्षित होने लगे। कुछ श्रावकों ने अनेक तरह के अतिशय, क्षेत्र पर अपनी आंखों से देखे और अनुभव किए ।
परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज का महलका में मंगल प्रवेश — 15 जनवरी 2020 को वह शुभ दिन आया, जब परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर सागर जी महाराज के पावन चरण कमल इस क्षेत्र पर पड़े। पूज्य मुनि श्री के मंगल प्रवेश के साथ ही ऐसा लगा जैसे यह तीर्थ क्षेत्र वर्षों से उन्हीं का इंतजार कर रहा था। पूज्य मुनि श्री ने हस्तिनापुर तीर्थ क्षेत्र के बाद जब महलका के दर्शन किए तो यह क्षेत्र उनके मन में ही बस गया या कहा जा सकता है यहां फैली हुई उर्जा, अलौकिक शक्ति और क्षेत्र के भविष्य को पूज्य मुनि श्री ने अपने विशेष ज्ञान से जान लिया हो।
विहार का समय था, वर्षा का मौसम हो जाने के कारण मुनि श्री को यहां दो दिन रुकना पड़ा। इन दो दिनों में पूज्य मुनि श्री ने इस क्षेत्र और यहां की परिस्थिति एवं वातावरण का सभी बिंदुओं से निरीक्षण किया। इस क्षेत्र पर भूलवश हुई कुछ कमियों की तरफ भी पूज्य मुनि श्री का ध्यान गया।
इन कमियों को दूर करने के लिए और क्षेत्र के विकास के लिए पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज ने चिंतन किया और उनके मार्गदर्शन से ही इस क्षेत्र के विकास की नई रूपरेखा तैयार हो गई, जिसमें क्षेत्र के प्राचीन चैत्यालय में मूल प्रतिमा के रूप में विराजमान चमत्कारी मनोज्ञ 108 पारसनाथ भगवान की प्रतिमा के लिए भव्य गंधकुटी निर्मित करने का निश्चय किया गया।
समाज के निवेदन पर 4 फरवरी 2020 को कड़ी ठंड में बीस दिन की अवधि में ही पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज पुनः महलका क्षेत्र पर आए और उनके सानिध्य में ही भव्य गंधकुटी व चौबीस कमल मंदिर का शिलान्यास यहां पर हुआ। इसके साथ ही निम्नलिखित निर्माण कार्य भी क्षेत्र के विकास की योजनाओं में सम्मिलित किए गए।
- प्राचीन वेदी जीर्णोद्धार एवं नवीन वेदी निर्माण
- भगवान पार्श्वनाथ गंध कुटी
- चौबीस कमल मंदिर निर्माण
- अर्हं संत निवास
- अर्हं यात्री निवास
- सामग्री कक्ष
- कुआं निर्माण
- अर्हं जैन औषधालय
- नवीन छात्रावास का निर्माण
वर्तमान समय में क्षेत्र में विकास एवं निर्माण कार्य तेजी से प्रगति पर है। शीघ्र ही पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज के पावन सानिध्य और उनके आशीर्वाद की छत्रछाया में यह क्षेत्र विकसित होकर नए रूप में सभी के सामने आएगा और अपनी कीर्ति एवं दोगुने अतिशय से भव्य जनों को आकर्षित कर सभी को धर्म मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता रहेगा।
