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पिच्छिका परिवर्तन समारोह प्रत्येक वर्ष गुरुजनों, मुनिराजों और आर्यिका माताओं के चार्तुमास सम्पन्न होने के पश्चात समाज द्वारा आयोजित किया जाता है। इस आयोजन में संयम, नियम, व्रत आदि लेने वाले श्रावकों से गुरूजन नई पिच्छिका ग्रहण करते हैं और अपनी पुरानी पिच्छिका किसी संयमी श्रेष्ठ श्रावक को अपने कर कमलों से प्रदान करते हैं। मुनिराज इस नई पिच्छी के माध्यम से अपने अहिंसा महाव्रत और चर्या का पालन करते हैं, तो सौभाग्यशाली श्रावक मुनिराज की पिच्छिका प्राप्त कर अपने को धन्य करते हैं। अपने घर में इस पिच्छिका को स्थापित कर उसके आगे सिर झुका, अपने संयम को दृढ़ बनाते हैं और मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ने की भावना भाते हैं।
अनेक श्रावकों का यह सपना होता है कि गुरूजन की पिच्छी हमें प्राप्त हो, इसके लिए वे अनेक नियम, संयम, व्रत ग्रहण करते हैं और मुनिराज के समक्ष पिच्छी के लिए अपना निवेदन भी करते हैं। पिच्छिका परिवर्तन वाले दिवस पर सभी श्रावकों को यह उत्सुकता रहती है कि वो कौन सौभाग्यशाली श्रावक होगें, जिनको मुनिराज को पिच्छी देने और लेने का सौभाग्य मिलेगा। जिन श्रावकों ने नियम, संयम लेकर पिच्छी के लिए अपना निवेदन किया होता है, पिच्छी परिवर्तन के समय उनके तो दिल की धड़कन ही बढ़ जाती है, यह सोचकर, कि हमें पिच्छी लेने या देने का अवसर मिलेगा या नहीं। कुछ संयमी पुण्यशाली श्रावकों को यह सौभाग्य मिलता है तो अन्य श्रावक उनकी अनुमोदना कर अपना पुण्य बढ़ाते हैं। इस सुन्दर परम्परा के साथ यह पिच्छिका परिवर्तन का कार्यक्रम आयोजित होता है।
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परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज और चन्द्र सागर जी महाराज का पिच्छिका परिवर्तन समारोह 13 नवम्बर 2022 को अतिशय क्षेत्र पनागर में बहुत ही धूमधाम व हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का प्रारम्भ दीप प्रज्जवलन, पाद-प्रक्षालन आदि मांगलिक क्रियाओं के द्वारा हुआ। इसके बाद अनेक प्रदेशों और क्षेत्रों से आये भक्तों ने अपने अर्घ्य समर्पित कर, सन्त शिरोमणि आचार्य भगवन श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का पूजन किया। ब्राह्मी सुन्दरी बालिका मंडल पनागर और जबलपुर की बालिकाओं द्वारा सुन्दर नृत्य प्रस्तुत किया गया। “पनागर के राजा का दरबार” लघु नाटिका ने सभी को आकर्षित किया। पिच्छिका को मुनिराज के समक्ष मंच तक लाने के लिए, यह एक नई तरह की प्रस्तुति थी। इस प्रस्तुति ने सभी दर्शकों का मन मोह लिया, सभी ने बहुत ध्यान व जिज्ञासा से इस लघु नाटिका को देखा और आनन्द लिया। इस नाटिका से सभी को पिच्छी के बारे में अनेक सूक्ष्म जानकारी भी प्राप्त हुई जिसे वें पहले नहीं जानते थे।
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इसके बाद नियम, संयम लेने वाले अनेक श्रावकों को पिच्छिका का अनावरण करने सौभाग्य मिला। तत्पश्चात नवीन पिच्छिका मुनिद्वय के कर कमलों में सौपने का पावन अवसर, अनेक पुण्यशाली श्रावकों को प्राप्त हुआ। अब समय था, उस पावन घड़ी का, जिसका सभी को बेसब्री से इन्तजार था। वह क्षण आया और पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज की पिच्छी प्राप्त करने का परम सौभाग्य एकलव्य विश्वविद्यालय, दमोह के कुलपति प्रोफेसर डॉ पवन कुमार जी जैन एवं उनकी धर्मपत्नी अंजूलता जी जैन को प्राप्त हुआ। पूज्य मुनि श्री चन्द्र सागर जी महाराज की पिच्छी प्राप्त करने का सौभाग्य पनागर निवासी डॉ अनुज जी जैन एवं उनकी धर्मपत्नी श्वेता जैन को प्राप्त हुआ। राहुल बड़कुल जी ने मंच का बहुत कुशलता पूर्वक संचालन किया। एक तरफ सम्पूर्ण कार्यक्रम में भक्तों के बीच उत्साह बढ़ाया, वहीं दूसरी तरफ भक्तों की भारी संख्या के बावजूद अनुशासन का सबसे पालन करवाया।
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पिच्छी परिवर्तन के पश्चात मुनिराज के आशीर्वचन का समय आया। पूज्य मुनि श्री चन्द्र सागर जी महाराज ने अपने उद्बोधन में पुरानी पिच्छी श्रावकों को देने की तुलना बेटी की विदाई से की और श्रावकों को संयम, नियम लेने के लिये अनेक प्रकार से प्रेरित किया। पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज ने इस आयोजन को भव्य कार्यक्रम बताया जिसमें संयम उपकरण के परिवर्तन को देखने के लिए भी बड़ी संख्या में लोग उत्सुक दिखाई दे रहे थे। उन्होंने पनागर के चार्तुमास को गोटेगांव के बाद, बुंदेलखण्ड में हुए स्मरणीय, भव्य चार्तुमास के रूप में वर्णित किया। समयाभाव के कारण पूज्य मुनि श्री का उद्बोधन संक्षिप्त ही हो पाया। उन्होंने श्रावकों को कभी भी निराश ना होने और सदा यह भावना भाने की प्रेरणा दी कि मैं भी कभी पिच्छी ग्रहण कर पंच परमेष्ठी पद को प्राप्त करूँ। कार्यक्रम के अन्त में, भक्तों ने आरती करते हुए अपने हृदय के भक्तिभावों को प्रकट किया। इस प्रकार बहुत ही आनन्द और प्रसन्नता के साथ इस कार्यक्रम का आयोजन सम्पन्न हुआ।
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अतिशय क्षेत्र पनागर के इतिहास में पूज्य मुनिद्वय का यह भव्य चार्तुमास भी सदा अंकित रहेगा। इस अतिशय क्षेत्र पर देवाधिदेव 1008 श्री शान्तिनाथ भगवान और पार्श्वनाथ भगवान की प्राचीन अतिशयकारी, मनोज्ञ प्रतिमा तो विराजमान हैं ही, इसके अतिरिक्त पार्श्वनाथ जिनालय में एक बड़ी वेदी पर, श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान की दो या तीन नहीं, बल्कि भव्य मनोहारी 11 प्रतिमाएं, एक साथ विराजमान हैं, जिनका दर्शन कर हृदय प्रसन्नता से भर जाता है।
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पनागर के बड़े बाबा शान्तिनाथ भगवान और पार्श्वनाथ भगवान का असीम आशीर्वाद और अनुकम्पा, पनागर वासियों पर बरसती है कि पूर्व में उनको प्राप्त हुए सौभाग्यों की सूची में पूज्य मुनिद्वय का यह भव्य चार्तुमास भी जुड़ गया। इस भव्य चातुर्मास में बड़ी संख्या में श्रावकों को, प्रथम बार अतिशय तीर्थक्षेत्र पनागरके दर्शन करने का सौभाग्य भी मिला।
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इस भव्य चातुर्मास में श्री शान्तिनाथ स्तुति, श्री शान्तिनाथ कथा का पनागर के बड़े बाबा के साथ ऐसा अटूट संबंध बन गया कि जब भी श्रावकजन श्री शान्तिनाथस्तुति का पाठ करेंगे, विधान करेंगे तो पनागर के बड़े बाबा श्री 1008 शान्तिनाथ भगवान के दिव्य दर्शन की स्मृति भी उनके हृदय को आनन्दित करती रहेगी। अनेक उपलब्धियों के साथ मुनिद्वय का यह भव्य ऐतिहासिक चातुर्मास हमेशा स्मरणीय रहेगा।