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भोजन जीवन की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। प्रत्येक प्राणी को अपने जीवन की रक्षा के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। रसोई वह स्थान है, जहां भोजन बनाया जाता है या जहां से भोजन की आपूर्ति होती है। इसलिए प्रत्येक घर में, भवन में रसोई का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है।
घर की महिलाएं परिवार के लिए रसोई में अनेक तरह के व्यंजन और भोजन बनाती हैं और पूरे परिवार के स्वास्थ्य का ध्यान रखती हैं। यह व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रहती है लेकिन इस व्यवस्था में भी समस्या तब आ जाती है, जब घर की महिला को अशुद्धि के दिनों से गुजरना पड़ता है। ऐसी स्थिति में जब उसको आराम और विश्राम की जरूरत होती है, तब भी वह रसोई में जाकर भोजन बनाती है। प्राचीन समय में संयुक्त परिवार होते थे, जिसमें एक महिला के असमर्थ होने पर दूसरी महिला उसके रसोई के कामकाज को कुछ दिन के लिए संभाल लेती थी। परंतु वर्तमान समय में एकल परिवार होने लगे इस कारण मजबूरी वश और कुछ अज्ञानता वश भी आज की महिलाएं अशुद्धि के दिनों में भी रसोई से संबंधी सभी कार्य करती रहती हैं।
हमारे प्राचीन शास्त्रों के अनुसार अशुद्धि के इन दिनों में महिलाओं को रसोई से पूरी तरह दूर रहना चाहिए। इन दिनों में भोजन आदि बनाने का कार्य करना उस महिला के स्वास्थ्य के लिए भी घातक है और उस भोजन को ग्रहण करने वाले परिवार के अन्य सदस्यों के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। स्वास्थ्य ही नहीं, धर्म और पुण्य की हानि भी इस तरह के कार्य से इससे होती है।
एक तरफ स्वास्थ्य और धर्म की हानि, दूसरी तरफ मजबूरी व अज्ञानता, ऐसी स्थिति में समाज परिवार दोनों लाचार बने रहते हैं। कुछ करने में अपने को असमर्थ पाते हैं। परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज ने दिल्ली चतुर्मास के समय जब इस समस्याओं को नोटिस किया, जाना तो उन्होंने इस समस्या के एक प्रेरणादायी समाधान के साथ समाज का मार्गदर्शन किया। वह समाधान था — प्रत्येक क्षेत्र पर समाज में एक सात्विक रसोई की व्यवस्था की जाए।
पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज के आशीर्वाद और पावन प्रेरणा से 2018 में दिल्ली के कृष्णानगर और रोहिणी क्षेत्र और 2019 में मेरठ में श्री विद्या प्रणम्य सात्विक रसोई की स्थापना की गई। उदघाटन के साथ ही तीनों जगह इन सात्विक रसोइयों का कुछ आवश्यक नियमों के साथ कुशलता पूर्वक संचालन शुरू हो गया और उचित मूल्य में ही सात्विक भोजन की सप्लाई आवश्यकता के अनुसार समाज के परिवारों में होने लगी।
लाभ — श्री विद्याप्रणम्य सात्विक रसोई के संचालन के साथ ही अनेक तरह के लाभ वहां के समाज को हुए —
- अशुद्धि के दिनों में घर की महिलाएं भोजन बनाने रसोई के कार्य से मुक्त हो गई। इससे उनके और परिवार के अन्य सदस्यों के स्वास्थ्य की रक्षा हुई।
- घर में महिलाओं के बीमार होने या अन्य कोई असमर्थता होने पर भी इन रसोइयों से भोजन की व्यवस्था हो जाती है।
- इसके अतिरिक्त बूढ़े बीमार लोग जो अकेले रहते हैं और बीमारी के कारण भोजन बनाने में उन्हें कठिनाई आती है, उनके लिए भी यह रसोई बहुत बड़ी support के रूप में सामने आई है।
- घर की महिला के तीर्थ यात्रा या बाहर जाने पर भी घर के सदस्य बाहर के भोजन पर निर्भर नहीं रहते। वे इन सात्विक रसोई का भोजन ले सकते हैं।
- हॉस्टल या पीजी आदि में रहने वाले जैन छात्रों के लिए भी यह रसोई उपयोगी सिद्ध हुई। बाजार और हॉस्टल के प्याज युक्त भोजन की जगह शुद्ध सात्विक भोजन की व्यवस्था उन्हें यहां मिली।
- शहर के किसी हॉस्पिटल में बाहर के किसी स्थान से एडमिट किसी व्यक्ति और उसकी फैमिली के लिए भी इन रसोइयों से सात्विक भोजन उपलब्ध हो जाता है।
- बाहर से कोई जैन व्यक्ति किसी कार्य से शहर में आता है और सात्विक भोजन ही करता है तो ऐसे लोगों के लिए भी ये सात्विक रसोई लाभदायक सिद्ध हुई है।
इस तरह एक समस्या के समाधान के उद्देश्य से संचालित की गई इन सात्विक रसोई से अनेक तरह के लाभ समाज को हुए। वर्तमान समय में श्री विद्या प्रणम्य सात्विक रसोइयाँ अन्य क्षेत्रों के लिए भी अनुकरणीय आदर्श मॉडल के रूप में स्थापित हो रही है।

