मैं हूँ वो नहीं, जो तुम्हें दिख रहा हूँ
मैं हूँ, जो नज़र से परे ही रहा हूँ
न जाने कहाँ से, यहाँ आ गया हूँ
मैं चेतन हूँ, तन में समाया गया हूँ
जो छूटा है मुझसे, वो मेरा नहीं था,
मैं बंधन से मुक्ति को अब पा रहा हूँ
सभी की तरह थी, मेरी जो भी हसरत
नहीं मुझको उनकी, रही अब ज़रूरत
मुझे जब से, मेरा पता मिल गया है,
मैं तबसे ही, अपने में सुख पा रहा हूँ
कठिन राह पर भी, मैं आसान क्यों हूँ
समझकर भी सब कुछ, मैं अनजान क्यों हूँ
यहाँ मेरी मंजिल, मेरे सामने है,
जो पाया न अब तक, वो अब पा रहा हूँ
ये एहसास कैसा मुझे हो रहा है
ये मुझको ही केवल नज़र आ रहा है
जुदा है जो मुझसे जुदा ही रहेगा,
मैं अपने को अपने में ही पा रहा हूँ
मेरे बाद भी, लोग आएंगे ऐसे
जो पूछेंगे, जग में जिये तुम थे कैसे
कहूँगा, मनाओ ये मृत्यु का उत्सव, मैं इस बार मरकर भी, मर न रहा हूँ