.

.
हे वीयराय भयवंत विहो
सव्वण्हु – हियंकर संति पहो।
अण्णाणं हर जगजणमणहर !
अवमाणं वेरं पावं हर
मंगलमय ! मंगलदाणकरं
तव जुगचरणं सरणं सरणं ।।१।।
हे वीयराय …..
भावार्थ: हे वीतराग भगवान विभो! सर्वज्ञ हितंकर शान्तिपथ! मेरे अज्ञान को हर लो!जगत के जन का मन हरण करने वाले भगवन! अपमान, वैर, पाप को हर लो। हे मंगलमय! आपके युगल चरण शरण हैं, शरण हैं और मंगलदान करने वाले हैं। हे वीतराग….
जीवा दु महामदमोहजुदा
जणणं मरणं जणणं मरणं
कुव्वंति सया बहुजोणिगदं
तव जुगचरणं मदमोहहरं ।।२।।
हे वीयराय …..
भावार्थ: जीव तो महामद और मोह से युक्त हैं। वे सदा अनेक योनियों को प्राप्त हुए जन्म, मरण, जन्म, मरण करते रहते हैं। आपके युगल चरण मद और मोह को हरण करने वाले हैं। हे वीतराग….
जीवाण सया देहासत्ती
विसयासत्ती ण कदा तित्ती।
भयवंत जिणेसर मोक्खपहो
कुव्वदि णियतित्तिं जगमेत्तिं ।।३।।
हे वीयराय …..
भावार्थ: जीवों को सदा देह में आसक्ति है, विषयों में आसक्ति है लेकिन कभी भी तृप्ति नहीं है। हे भगवान जिनेश्वर का मोक्षपथ ही निज तृप्ति और जगत में मैत्री करता है। हे वीतराग….