परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज की मंगल वाणी में तत्त्वार्थ सूत्र वाचना
ग्रंथराज श्री तत्त्वार्थ सूत्र के अध्याय- 5 में हमें छह द्रव्य -जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्य के बारे में ज्ञान मिलता है। इन 6 द्रव्यों को समझना कठिन सा लगता है, पर जब ये समझ में आ जाते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैन आगम में समाहित अद्भुत रहस्यों और तथ्यों को हमने आज जान लिया है।
परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज के प्रवचनों की अनोखी विशेषता है कि कठिन विषय भी सरलता से समझ में आ जाते हैं। अध्याय- 5 जैसे कठिन विषय पर पूज्य मुनि श्री के सरल, सरस, रोचक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से किए गए प्रवचनों की यह श्रंखला विशिष्ट प्रकार के ज्ञान वर्धन के लिए एवं जैन आगम को जानने के लिए एक अनमोल उपहार है।
इस प्रवचन श्रंखला की विशेषता है कि 6 द्रव्यों के बारे में विस्तार से समझाया गया है और सूक्ष्म जानकारी भी प्रदान की गई है। सरल शब्दों में सामान्य जीवन के उदाहरणों के साथ नीरस, जटिल विषय को भी रुचिकर, सरस एवं सरल बना दिया गया है।
प्रवचन 15 (28-Oct-2020)
(सूत्र: 38 – 42)
.
प्रवचन 14 (27-Oct-2020)
(सूत्र: 32 – 37)
.
प्रवचन 13 (26-Oct-2020)
(सूत्र: 28 – 31)
.
प्रवचन 12 (25-Oct-2020)
(सूत्र: 25 – 28)
.
प्रवचन 11 (24-Oct-2020)
(सूत्र: 22 – 24)
.
प्रवचन 10 (23-Oct-2020)
(सूत्र: 22)
.
प्रवचन 9 (22-Oct-2020)
(सूत्र: 20 – 21)
.
प्रवचन 8 (21-Oct-2020)
(सूत्र: 19 )
.
प्रवचन 7 (20-Oct-2020)
(सूत्र: 16 – 18)
.
प्रवचन 6 (19-Oct-2020)
(सूत्र: 12 – 15)
.
प्रवचन 5 (18-Oct-2020)
(सूत्र: 9 – 11)
.
प्रवचन 4 (17-Oct-2020)
(सूत्र: 6-8)
.
प्रवचन 3 (16-Oct-2020)
(सूत्र :4 – 5)
.
प्रवचन 2 (15-Oct-2020)
(सूत्र: 2 – 3)
.
.
प्रवचन 1 (14-Oct-2020)
(सूत्र: 1)
प्रवचन के प्रारम्भ में ही पूज्य मुनि श्री ने स्पष्ट किया है कि परम वैज्ञानिक महावीर भगवान ने केवल ज्ञान द्वारा आत्मसाक्षात्कार में जो देखा, वह यहां बताया जा रहा है। अजीव पदार्थों के बारे में सूक्ष्म तत्वों को प्रत्यक्षदर्शी आत्मा ही जानता है और केवलज्ञान से ही आत्मा प्रत्यक्षदर्शी होता है।
इस प्रकार दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है, यह वो ज्ञान है, जहां तक वैज्ञानिकों की पहुंच नहीं हो सकती। केवलज्ञान या अतीन्द्रिय ज्ञान द्वारा ही इन सूक्ष्म विषयों को जाना जा सकता है। वैज्ञानिकों के पास ये ज्ञान नहीं होते इसलिये उनका ज्ञान इस ज्ञान की तुलना में बहुत सीमित रह जाता है। बहुत से वैज्ञानिकों ने इस बहुमूल्य ज्ञान को पढ़कर ही अनेक तरह के सिद्धान्तों का आविष्कार भी किया लेकिन केवल ज्ञान और अतीन्द्रिय ज्ञान के अभाव में वह ज्ञान अधूरा और सीमित ही है।
6 द्रव्यो में आकाश, धर्म, अधर्म शब्द के बारे में हम जो सामान्य ज्ञान रखते हैं, यह ज्ञान उससे अलग है। जैन आगम के अनुसार, आकाश द्रव्य वह नहीं जो हमें ऊपर देखने पर दिखता है, जिसे हम आसमान या sky भी कहते हैं। धर्म, अधर्म शब्दों के नाम से हमारे मस्तिष्क में सामान्य रूप से जो ज्ञान आता है , धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य उससे भिन्न है।
इन प्रवचनों के माध्यम से हमें यह पता चलता है कि ये द्रव्य जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म आकाश और काल क्या होते हैं? इनके क्या क्या कार्य हैं? इनकी विशेषताएं क्या होती हैं? हमारे लिये इनका क्या महत्व है? एक दूसरे के लिए इनका क्या उपकार होता है ?
लोकाकाश किस तरह से अन्य सभी द्रव्यों को अपने में स्थान देता है? ये जो हम किसी भी प्रकार की गति करते हैं, यह सब धर्म द्रव्य का ही उपकार है और गति से रुकने के लिए अधर्म द्रव्य ही सहायक होता है, अन्यथा तो सभी पदार्थ पूरा समय गतिशील बने रहते।
ये द्रव्य किस तरह एक दूसरे से संबंधित हैं? एक दूसरे के लिए उपयोगी हैं? इन 6 द्रव्यों में ही पूरा संसार और सभी क्रियायें समाहित हैं, जिसने भी इन द्रव्यों को अच्छे से समझ लिया, उसने समझो, जैन आगम में समाहित अनमोल विज्ञान और बह्माण्ड के ज्ञान को भी जान लिया। इन प्रवचनों को सुनकर ये सभी द्रव्य बहुत स्पष्ट रुप से समझ में आ जाते हैं।
किसी भी द्रव्य के परिणमन के लिए किन दो प्रकार के निमित्तों की आवश्यकता होती है? यह विषय लोहा, लकड़ी, अग्नि और दाल के उदाहरण के साथ सुंदर रूप से समझाया गया है। जीव द्रव्य के प्रदेश पूरे लोकाकाश में फैल सकते हैं, ऐसी आश्चर्यजनक क्षमता उनमें होती है। चिंता, भय, क्रोध का आत्मा के प्रदेशों पर कैसा प्रभाव पड़ता है? लोकाकाश के प्रदेशों पर पुद्गल के परमाणु कैसे स्थित होते हैं? इनकी सूक्ष्म व्याख्या करके इस विषय को रोचक बना दिया गया है। पुद्गल परमाणु की अवगाहना शक्ति को बाल्टी, पानी, नमक,आलपिन के उदाहरण से सुन्दर रूप में समझाया गया है।
वचन की उत्पत्ति के बारे में अभूतपूर्व वर्णन मिलता है, जिसके बारे में आज का विज्ञान भी नहीं जानता। मन कितने प्रकार के होते हैं? मन की उत्पत्ति कैसे होती है? मन के बारे में मनभावन, मनोवैज्ञानिक ज्ञान इन प्रवचनों से अर्जित होता है। सप्तभंग में सात तरह से कैसे प्रश्न पूछे जा सकते हैं ? उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य क्या होते हैं? उदाहरण देकर समझाया गया है । इसके साथ ही जैन आगम में अणु, परमाणु, पुद्गल स्कन्धों के बारे में जो वर्णन मिलता है वहअन्यत्र नहीं मिलता। इस अमूल्य ज्ञान की प्राप्ति भी इन प्रवचनों से होती है। इस वर्णन को सुनकर ही समझ आता है कि सर्वज्ञ के ज्ञान के सामने आज के विज्ञान का ज्ञान कितना कम है ।
इसके अतिरिक्त पूज्य मुनि श्री इन प्रवचनो में यह तक सूक्ष्म रूप से बताते हैं कि इस सूत्र में चा शब्द क्यों लगा या इस जगह ये विभक्ति क्यों तोड़ी गई ? मन, वचन के बारे में सूत्र 19 पर ही पूज्य मुनि श्री ने पूरा एक प्रवचन दिया तो काल द्रव्य के बारे में सूत्र 22 के आधे सूत्र पर ही पूरा प्रवचन हुआ। ऐसा विस्तृत ज्ञान भी और बहुत ही सूक्ष्म जानकारी भी इस प्रवचन श्रंखला से श्रोताओं को प्राप्त हो रही है। निष्कर्ष रूप में, यह प्रवचन तो ज्ञानामृत और पुण्य की वर्षा के समान हैं। यह हमारी क्षमता और हमारे प्रयास पर निर्भर है कि हम कितना लाभ इनसे उठा सकते हैं।