तत्त्वार्थ सूत्र वाचना अध्याय -4

परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज की मंगल वाणी में तत्त्वार्थ सूत्र वाचना

       परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज ने तत्त्वार्थ सूत्र ग्रन्थराज के अध्याय- 3 और 4 को लोक विज्ञान का नाम देते हैं। पूज्य मुनि श्री कहते हैं जो लोग जैन दर्शन के अनुसार लोक विज्ञान को जानना चाहते हैं, उन्हें तत्त्वार्थ सूत्र के अध्याय- 3 और 4 का श्रवण, मनन और चिंतन अवश्य करना चाहिए।

         अध्याय- 4 पर पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज की मंगल वाचना ज्ञानामृत की वर्षा ही कर देती है। तीसरे अध्याय में अधोलोक, मध्यलोक के बारे में जानकारी प्राप्त कर आनंदित हुआ श्रोताओं का हृदय, इस अध्याय पर हुए प्रवचनों को सुनकर प्रसन्नता से खिल उठता है। इन प्रवचनों के माध्यम से मिले विशेष एवं विविध ज्ञान को जो प्राप्त करता है, उसका आनन्द वही अनुभव करता है, शब्दों से उसका वर्णन करना कठिन है। जैसे गुड़ के मीठेपन को वही जानता है जो उसका स्वाद लेता है, ऐसा ही इन प्रवचनों का मधुर रस है, जो स्वाद ले रहा है, श्रवण कर रहा है, वही उसे जान रहा है।

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प्रवचन 11 (13-Oct-2020)

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प्रवचन 10 (12-Oct-2020)

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प्रवचन 9 (11-Oct-2020)

प्रवचन 8 (10-Oct-2020)

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प्रवचन 7 (09-Oct-2020)

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प्रवचन 6 (08-Oct-2020)

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प्रवचन 5 (07-Oct-2020)

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प्रवचन 4 (06-Oct-2020)

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प्रवचन 3 (05-Oct-2020)

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प्रवचन 2 (04-Oct-2020)

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प्रवचन 1 (03-Oct-2020)


       अध्याय- 4 के इन प्रवचनों में देवों के बारे में मनोरम वर्णन मिलता है।  देवों के प्रकार आदि की जानकरी तो सामान्य श्रावकजन रखते हैं, लेकिन इससे अधिक, विशेष व अनेक प्रकार की जानकारी इन  प्रवचनों को श्रवण करके मिलती है। भवनवासी देवों के नाम उनकी संख्या के बारे में तो पता चलता ही है, उनके नाम के आगे कुमार शब्द क्यों लगता है? इसका कारण भी ज्ञात होता है।

             व्यन्तर देवों के प्रकार के बारे में जानने के साथ ही, उनके बारे में फैली अनेक प्रकार की भ्रांतियां भी दूर होती हैं। भूत, पिशाच आदि कोई भटकती आत्मा नहीं बल्कि व्यन्तर देवों के ही नाम हैं। उन से डरना नहीं चाहिए। उनके स्वरूप को जानने का प्रयास करना चाहिए। ये देव किसी कार्य से नाराज होकर बाधा ना डालें, इसके लिए क्या सावधानियां रखनी है? यह भी इन प्रवचनों के माध्यम से समझ में आता है।

          ज्योतिष्क देवों के वर्णन को सुनकर अदभुत ज्ञान की वृद्धि होती है और यह गर्व भी होता है, हमारे आगम में कितना बहुमूल्य ज्ञान और रहस्य समाहित है । विज्ञान का ज्ञान तो उसकी तुलना में बहुत कम है, जैसे सूर्य के सामने दीपक का प्रकाश। ज्योतिष्क देवों के विमानों के बारे में भी अनेक भ्रांतियां, गलत धारणायें, इन प्रवचनो से दूर होती हैं.. जैसे सूर्य, चन्द्रमा के विमान मध्यलोक में ही हैं, ऊर्ध्व लोक में नहीं। इनकी संख्या, गति आदि कें बारे में जब जानते हैं, तब समझ आता है कि  इनके बारे में हमारा ज्ञान तो बहुत ही न्यूनतम है।

        कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष होने का वास्तविक कारण क्या है? प्रत्येक वर्ष समय के साथ दिन-रात, छोटे-बड़े क्यों होने लगते हैं? यह पूज्य मुनि श्री ने map और maths दोनों का प्रयोग कर  बहुत सरल रूप से समझाया। सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का वास्तविक कारण क्या है? सूर्य उष्ण और चन्द्रमा शीतल क्यों होता है। इन सब रहस्यों के बारे में जब ज्ञान  बढ़ता है तो ऐसा प्रतीत होता है, अज्ञान की कितनी परतें आज हमारे मस्तिष्क से हट गई हैं।

        वैमानिक देवों के प्रकार, उनके विमानों की स्थिति, ऊपर के विमानों के देवों में कौन सी चीजों की अधिकता होती रहती है? कौन सी चीजों की कमी होती जाती है? ये वर्णन सुनकर बहुत कुछ नया सीखने को मिलता है। लौकान्तिक देवों के बारे में इन प्रवचनों के माध्यम से सामान्य श्रावकजन को प्रथम बार इतना विस्तृत रूप से जानने का अवसर मिलता है।

                     इन प्रवचनों में ही लेश्या के बारे में ऐसी सरल, सुगम जानकारी प्राप्त होती है कि कोई भी व्यक्ति तुरंत अपना analysis कर अपनी लेश्या को positive रुप में परिवर्तित कर सकता है। मृत्यु का समय आने पर अपनी लेश्या को कैसे सुधारें कि आगे का जन्म  भी शुभ लेश्या वाला, अच्छी गति  वाला प्राप्त प्राप्त हो? यह भी इन आत्महितकारी प्रवचनों से सीखा जा सकता है।

                  यह मर्मस्पर्शी प्रवचन, केवल ज्ञान वर्धन ही नहीं करते बल्कि  बीच-बीच में ऐसे Tips भी दे देते हैं, जिनको जीवन में उतारकर इस जन्म के साथ साथ आने वाले जन्मों को भी सुधारा जा सकता है। निष्कर्ष रूप में ,ये  प्रवचन ज्ञान का वो खजाना हैं जो बहुत भाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होता है।

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