इष्टोपदेश

इष्टोपदेश = इष्ट+ उपदेश, अर्थात प्रिय लगने वाले उपदेश। इस ‘इष्टोपदश’ ग्रंथ पर ही परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज की मंगलमय वाणी में, जन-जन को इष्ट लगने वाले, ये प्रवचन हैं। इन प्रवचनों को सुनकर श्रोतागण को ग्रंथ का ज्ञान भी होता है, स्वाध्याय भी होता है, ग्रंथ easily समझ में भी आता है, गुरु का चिंतन और जीवन जीने के सूत्र और tips भी उनको इनसे मिलते हैं। इसके साथ ही उनका ये आत्मविश्वास भी बढ़ता है कि उन्होंने इस ग्रंथ को पूरी तरह से समझ लिया है। ये प्रवचन श्रोतागण को इसलिए भी इष्ट (प्रिय) लगते हैं क्योंकि ये एक उच्च स्तर का सही और उपयुक्त आत्मिक ज्ञान भी देते हैं जो बहुत कम और बहुत सौभाग्य से ही किसी को मिल पाता है।

Posted in Pravachan.

Comments will appear after approval.

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.