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हम लेकर घृत के दीप झुकायें शीश, तुम्हें मुनि राजा
श्री प्रणम्य सागर महाराजा, श्री चन्द्र सागर महाराजा।
भोगांव में तुमने जन्म लिया, श्री सरिता माँ को धन्य किया।
थे पिता तुम्हारे श्री वीरेन्द्र कुमारा, श्री प्रणम्य……….।।1।।
तुम नगर जबलपुर जन्म लिया, माता पिता को धन्य किया।
बचपन में तुम्हारा नाम था चन्द्र कुमारा, श्री प्रणम्य……….।।2।।
तुम्हरे गुरु विद्यासागर हैं, जो भरते ज्ञान की गागर हैं।
परिवार त्याग कर भेष दिगम्बर धारा, श्री प्रणम्य……….।।3।।
मृत्यु को निकट से देखा था, वैराग्य बीज तब बोया था।
मिली विद्या गुरु से चरण शरण की छाया, श्री प्रणम्य………. ।।4।।
तुम नग्न दिगम्बर रहते हो, परिषह उपसर्ग को सहते हो।
गुरु मुख पर मुस्कान खिले है ताजा, श्री प्रणम्य……….।।5।।
गुरुवर ने तुमको मुनि बना, श्री प्रणम्य सागर नाम दिया।
श्री चन्द्र सागर जी भये मुनि महाराजा, श्री प्रणम्य……….।।6।।
दोनों मुनिवर उपकारी हैं, हम गुरु के चरण पुजारी हैं।
गुरु के चरणों में नमन हो बारम्बारा, श्री प्रणम्य……….।।7।।
जो पथ तुमने अपनाया है, हम सबके मन को भाया है।
वह मार्ग न लौटे सिद्ध शिला से दुबारा, श्री प्रणम्य……….।।8।।
हम लेकर घृत के दीप झुकायें शीश, तुम्हें मुनि राजा
श्री प्रणम्य सागर महाराजा, श्री चन्द्र सागर महाराजा।।
गुरु पूजन के अतिरिक्त दोनों मुनिराज परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज और परम पूज्य मुनि श्री चंद्र सागर जी महाराज के प्रति भक्ति भावों को समर्पित करते हुए, किसी भक्त ने बहुत सुन्दर आरती भी लिखी है। छोटी सी आरती में गागर में सागर भरने का कवि ने प्रयास किया है। मुनिराज के गृहस्थावस्था के माता-पिता को सम्मान दिया है तो गुरु महाराज की महिमा और उपकार का भी वर्णन किया है। वैराग्य का कारण भी कुछ शब्दों में ही दर्शा दिया है। अंत में कवि कहता है — जो पथ आपने अपनाया है, वह सिद्धशिला से दोबारा वापस नहीं आएगा, यह मार्ग तो हमारे मन को भी भा गया है।
कम शब्दों में ही, कवि ने आरती में पूज्य मुनिवर के जीवन का चित्रण कर दिया है। भक्तजन प्रतिदिन सन्ध्या के समय इस आरती के साथ दोनों मुनिराज की भक्ति करते हैं और आनन्दित होते हैं।