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मनुष्य जन्म को एक बहुमूल्य रत्न के समान माना जाता है। जिस प्रकार किसी समुद्र में से अचानक किसी व्यक्ति को भाग्य से कोई रत्न मिल जाए तो वह बहुत भाग्यशाली व्यक्ति माना जाता है, इसी प्रकार इस भवसागर में अनेक गतियों और भवों में भटकते हुए मनुष्य जन्म जिस जीव को प्राप्त हो जाता है तो वह जीवात्मा भी बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है।
मनुष्य जन्म तो बहुत जीव प्राप्त कर लेते हैं परंतु वे इस सौभाग्य का महत्व नहीं पहचानते। मनुष्य जन्म के दुर्लभ अवसर को भी वे उस प्रकार खो देते हैं, जैसे कोई व्यक्ति बहुमूल्य रत्न को काँच समझ कर वापस समुद्र में फेंक देता है। मनुष्य जन्म वह अवसर है जो हमें संसार के सभी दुखों से निकालकर, अनंत स्थायी सुख व आनंद, (मोक्ष) में पहुंचा सकता है। जन्म मरण के दुखों से छुटकारा दिला सकता है। मनुष्य जन्म के इस महत्व को वही भव्य आत्मा वास्तव में समझता है जो अपने कदम मोक्ष मार्ग पर बढ़ा देता है। दूसरे शब्दों में, मोक्ष मार्ग पर कदम बढ़ा देने वाले भव्य आत्माओं का ही मनुष्य जन्म पूर्णतया: सफल माना जाता है।
हमारे तीर्थंकर भगवान भी पूर्व जन्मों में हम जैसे ही मनुष्य थे। उन्होंने अपने मनुष्य जन्म को सफल बनाकर मोक्ष सुख पाया और अन्य भव्य जनों को मोक्ष मार्ग पर चलने का मार्ग दिखाया। तीर्थंकर भगवान द्वारा दिखाए गए मार्ग को अन्य भव्य आत्माओं ने पहचाना। उन्होंने भी संयम, महाव्रत लेकर इस मार्ग पर चलने का निश्चय किया और अपने मनुष्य जन्म को सार्थक कर दिया।
मोक्ष मार्ग पर कदम बढ़ाते हुए दीक्षा का अवसर प्रत्येक मोक्षमार्गी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। दीक्षा ही एक तरह से, इस मनुष्य जन्म का सबसे बड़ा उपहार होती है जो गुरु द्वारा मोक्ष मार्ग पर चलने वाले अपने सुयोग्य शिष्यों को दी जाती है। मुनिजन, गुरुजन के लिए यदि कोई दिवस सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है तो वह यह दीक्षा दिवस ही होता है। यह दीक्षा दिवस उनके लिए एक नए जन्म की तरह ही होता है, इस दिन उनको एक नया नाम और नई पहचान प्राप्त होती है।
आज से 23 वर्ष पूर्व 11.02.1998 माघ शुक्ला पूर्णिमा के दिन, परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज और परम पूज्य मुनि श्री चंद्र सागर जी महाराज के जीवन में भी दीक्षा दिवस का शुभ अवसर आया। दोनों मुनिराज को अपराजेय साधक संत, शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज ने इस शुभ दिन दिगंबर दीक्षा प्रदान की। तभी से प्रत्येक वर्ष भक्तजन इस शुभ दिन को दीक्षा दिवस के रूप में खूब धूमधाम से मनाते हैं। पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज कहते हैं- हमारा जन्म तो उसी दिन से शुरू होता है, जिस दिन हमारी दीक्षा हुई, इससे पहले के जीवन की इतनी सार्थकता, इतना महत्व नहीं है। इसी कारण वे श्रावकों द्वारा मनाए जाने वाले अवतरण दिवस को इतना महत्व नहीं देते, पर दीक्षा दिवस को अपने लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन मानते हैं।
तीर्थक्षेत्र महलका में दीक्षा दिवस 2020—
सभी क्षेत्रों के श्रावकों को यह प्रतीक्षा रहती है कि इस बार मुनिद्वय का दीक्षा दिवस हमारे क्षेत्र पर हो। लेकिन यह अवसर बहुत सौभाग्य से मिलता है। इस बार मुनिद्वय का दीक्षा दिवस मनाने का सौभाग्य अतिशय तीर्थ महलका (मेरठ) को प्राप्त हुआ। यह तीर्थ, शहरी क्षेत्र से दूर स्थित है। भक्तों के उत्साह को यह दूरी नहीं रोक सकी और बड़ी संख्या में भक्तजन मुनिद्वय का दीक्षा दिवस मनाने के लिए जुड़ गए। दिल्ली, मेरठ, हस्तिनापुर,खतौली, सरधना आदिअनेक क्षेत्रों से भक्तजन महलका पहुंच गये। दीक्षा दिवस के दिन प्रात: काल ही मंदसौर से आई दीदियों ने दोनों मुनिराज की पूजा,आरती से दिन का शुभारंभ किया।
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भक्तों ने मुनिद्वय के कक्ष के बाहर रंगोली और गुब्बारों द्वारा अनेक तरह से सुंदर सज्जा की। प्रात: काल महलका तीर्थ क्षेत्र पर भव्य गन्धकुटी और 24 कमल मन्दिर का शिलान्यास संपन्न हुआ। दोपहर के समय दीक्षा दिवस का कार्यक्रम आरंभ हुआ। भक्तों ने मुनिद्वय के पहुंचने से पहले ही पूरे पंडाल को गुब्बारों रंगोली व झालरों से सजा दिया। अपनी मधुर आवाज से किसी भी कार्यक्रम में समां बांध देने वाली जबलपुर से आई सुप्रसिद्ध गायिका प्रीति जी अपने भजनों से सभी के हृदय में भक्ति भावों को बढ़ाती जा रही थीं। पंडाल भक्तो से पूरी तरह से भर चुका था, भक्तों की नजरें बेसब्री से मुनिद्वय के आगमन की प्रतीक्षा कर रही थीं।
दोनों मुनिराज का पंडाल में प्रवेश हुआ तो भक्तों को ऐसा लगा, जैसे साक्षात भगवान उनके बीच आ गए हों। भक्ति भावों के साथ नृत्य गान करते हुए भक्तों ने दोनों मुनिराज का पूजन किया। सरधना से आये भक्तों ने 23 श्रीफल गुरुजनों के चरणों में अर्पित कर अपने क्षेत्र में उनसे प्रवास करने के लिए निवेदन किया। मेरठ से प्रियंका जैन ने मधुर स्वर में ‘प्रणम्याष्टक’ से सुन्दर मंगलाचरण किया। इसके पश्चात दोनों मुनिद्वय के जीवन पर एक सुन्दर नाटिका टीम अर्हं के सदस्यों के द्वारा प्रस्तुत की गई।
पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में अपने गुरु महाराज को याद करते हुए, अपने भक्ति भाव समर्पित किए। उन्होंने कहा दीक्षा दिवस के साथ ही सब सुख इच्छाओं को बांधकर एक कोने में रख दिया जाता है। दीक्षा दिवस के दिन हम यह भी अपने में देखते हैं कि हमारे वैराग्य का स्तर वैसा ही बना रहे, जैसा कि दीक्षा वाले दिन था। इसके अतिरिक्त उन्होंने समझाया कि व्यक्ति को केवल अपने नाम को ही महत्व नहीं देना चाहिए। यह तो पुदगल शरीर का नाम है, हमारी वास्तविक पहचान तो अलग होती है। पूज्य मुनि श्री चन्द्र सागर जी महाराज ने दीक्षा दिवस के महत्व को बताकर भक्तजनों का अनेक तरह से मार्गदर्शन किया। कार्यक्रम के अंत में भक्तों ने जोश और जयकारों के साथ मुनिद्वय की मंगल आरती की। इस तरह से बहुत आनंद उत्साह के साथ दीक्षा दिवस का यह शुभ कार्यक्रम संपन्न हुआ।
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