विद्यासागर इस धरती पर, कोई फरिश्ता का है नूर।
जिसने देखा तुमको गुरुवर, उसको चैन मिला भरपूर।।
विद्यासागर…
शिक्षित बाल युवा दीक्षा दे, चेतन का उद्धार किया।
कुण्डलपुर के बड़े बाबा को, तुमने उच्चस्थान दिया।
नारी शक्ति संस्कारित हो, प्रतिभा स्थली बना दिया।
जन-जन की करुणा से पूरित, भाग्योदय निर्माण किया।
करके जग का हित मेरे गुरुवर, जग में रहते जग से दूर।।
विद्यासागर…
दीप अनेकों जलते -बुझते, उनसे क्या रोशन हो जहां?
कदम आपके जहाँ भी पड़ते, ज्ञान दीप जलते हैं वहाँ।
तुमने दीप से दीप जलाकर, ज्ञान प्रकाश बढ़ाया है।
अपने गुरुवर से ज्योति ले, जग जन को नहलाया है।
आप कृपा से दूर रहा जो, उसमें उसका ही है कसूर।।
विद्यासागर…
शरद पूर्णिमा की उजली-सी, रात में कोई आया था ।
होके युवा तप को धारण कर, चाँद निशा में छाया था।
आज उसी की शीतलता में, आनन्दित है जग सारा।
जिससे ही बस फैल रहा, जिनशासन का उजयारा।
तुमसे चाँद सितारों को भी, और फिजाओं को है गुरूर।।
विद्यासागर…