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पसीयंतु ते पसीयंतु मे,
पसीयंतु ते पसीयंतु मे।
जिणा केवली धम्मतित्थंकरा
पसीयंतु ते पसीयंतु मे ॥
भावार्थ: वे जिन, केवली और धर्म तीर्थंकर आप सबको प्रसन्न करें और मुझे प्रसन्न करें।
जे णिम्ममा जे णिरीहा सदा
जे चेयणाए विलीणा मुदा
रमंति सदा सुद्धभावेसु जे
पसीयंतु ते पसीयंतु मे ॥
भावार्थ: जो निर्मल हैं और सदा निरीह हैं, जो चेतना में प्रसन्नता से विलीन होते हैं तथा जो शुद्धभावों में सदा रमण करते हैं, वे मुझे प्रसन्न करें।
सिद्धारिहा सूरिणो साहवो
अज्झावगा पंच परमेट्ठिणो।
सुहं दिंतु सरणोत्तमा मंगला
पसीयंतु ते पसीयंतु मे।
भावार्थ: सिद्ध, अरिहंत, आचार्य, साधु और उपाध्याय ये पांच परमेष्ठी शरण है, उत्तम हैं, मंगल हैं, वे मुझे प्रसन्न करें।