संत शिरोमणि का स्वर्णिम संयम उत्सव।
भव्य जनों के लिए भक्ति का है अवसर।।
श्रमण संस्कृति के जो नेता आज बने।
जिनके नाम से श्रद्धा मन में सहज बने।
चारित की खुशबू से जग को महकाया।
उनकी भक्ति करने विश्व सिमट आया।
नरम बना है स्वयं नर्मदा का कंकर।।
भव्य जनों के लिए….
जिनके चारित ज्ञान ध्यान की शानी ना।
जिनके कंठ विराजित है जिनवाणी माँ।
मूकमाटी भी जिनके हाथों बोल पड़ी।
श्रमण श्रमणियों की टोली भी घेर खड़ी।
धन्य हुए हैं सर्प सिंह भी दर्शन कर।।
भव्य जनों के लिए….
जिनशासन को आज नाज बस तुम मै है
विद्यासागर एक नाम सब मुँह पै है।
प्रतिभास्थली भाग्योदय की रचनाएँ।
पाठ दया का गौशालाएँ सिखलाएँ।
उपकृत आप कृपा से जन-जन हर घर-घर।।
भव्य जनों के लिए…