जिनागम साहित्य में प्राचीन ऋषि-मुनियों ने अनेक महान ग्रंथों की रचना की है। इन ग्रंथों में कठिन संयम तप में लीन रहने वाले ऋषि-मुनियों के उत्कृष्ट ज्ञान व वचनों से निकली हुई, मंगल गाथाएं व संस्कृत सूत्र समाहित हैं। ये गाथाएं व सूत्र अपने आप में इतने शुभ माने जाते हैं कि यदि उनका अर्थ समझ ना आए, तो भी इनको पढ़ने, सुनने मात्र से तीव्र पुण्यबंध होने लगता है। इसके साथ ही हमारे ज्ञान में बाधा डालने वाले ज्ञानावरणी कर्म का क्षयोपशम (कमी) भी होने लगता है।
ऐसे उदाहरण भी सामने आते हैं, जब एक छोटा बालक अपनी मां के साथ किसी शास्त्र स्वाध्याय, वाचना में जाता था और वहाँ बैठकर ध्यान से शास्त्रों की गाथाओं को सुनता था, तो कुछ ही दिन में उस बालक की स्मरण शक्ति बहुत तेज हो गई। इस तरह के प्रत्यक्ष लाभ भी इन गाथाओं एवं संस्कृत सूत्रों को श्रवण करने मात्र से हो जाते हैं।
प्राचीन महान ग्रंथों, संस्कृत के सूत्रों, श्लोकों और प्राकृत गाथाओं का पाठ करना आम्नाय स्वाध्याय कहलाता है। इसी कारण स्वाध्याय का लाभ भी ग्रंथों में समाहित इन सूत्रों व गाथाओं का पाठ करने से प्राप्त हो जाता है।
पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज की मंगलमयी मधुर वाणी में, प्राचीन शास्त्रों की गाथाओं एवं संस्कृत सूत्रों को audio और video के माध्यम से यहां श्रवण किया जा सकता है। इसके अतिरिक, इन प्राचीन गाथाओं को पढ़ने व श्रवण करने से अन्य कौन-कौन से लाभ मिलते हैं? यह जानकारी भी सलंग्न विडियो में उपलब्ध है।
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श्री तत्त्वार्थ सूत्र
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मूल शास्त्रों की गाथाएं पढ़ने और सुनने का महत्व
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प्रवचनसार गाथा
( 01- 50 )
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प्रवचनसार गाथा
( 51 – 101)
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इष्टोपदेश गाथा
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श्री तत्त्वार्थ सूत्र पाठ (अध्याय -1)
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श्री तत्त्वार्थ सूत्र पाठ (अध्याय -2)
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श्री तत्त्वार्थ सूत्र पाठ (अध्याय -3)
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श्री तत्त्वार्थ सूत्र पाठ (अध्याय -4)
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