संसार एक भवसागर की तरह है, जिसमें यह जीव बार-बार डूबता रहता है अर्थात बार-बार जन्म लेता रहता है और मरता रहता है। संसार वह भयानक जंगल है जिसमें ये जीव अनेकों गतियों में जन्म लेकर भटकता रहता है पर अपनी मंजिल को प्राप्त नहीं कर पाता। पाए भी कैसे, उसे अज्ञानता में यह ही नहीं पता होता कि उसकी मंजिल क्या होनी चाहिए।
गुरु वह जहाज है जो भवसागर में डूबते हुए जीव को सहारा देकर डूबने से बचाता है। गुरु वह मार्गदर्शक है जो मार्ग से भटके हुए जीव की सही राह दिखाकर सिद्धशिला तक का मार्ग बता देता है। जैसे माता-पिता बच्चे को उंगली पकड़कर चलाना सिखा देते हैं, वैसे ही गुरु शिष्य को भक्त को मोक्ष मार्ग पर चलना सिखा देते हैं।
अनन्त स्थायी सुख (मोक्ष) क्या होता है? आत्मा कैसे परमात्मा बन सकता है? यह मार्ग भगवान ने दिखाया। जिनवाणी मां (भगवान की वाणी) हर पल हमें इसी मार्ग पर बढ़ने की प्रेरणा देती है और गुरु हमें सिखाते हैं किस तरह संभल कर एक एक कदम इस मार्ग पर आगे बढ़ाना है। गुरु इस मार्ग पर आगे बढ़ने की केवल थ्योरी ही नही सिखाते बल्कि वे अपने संयम, चारित्र व आचरण द्वारा हर क्षण प्रेक्टिकल भी करके दिखाते रहते हैं।
गुरु का महान उपकार शब्दों में कहना मुश्किल होता है। गुरु ही भगवान की सही पहचान कराता है। कबीर दास जी ने भी कहा है — गुरु और भगवान में से पहले यदि किसी के चरण स्पर्श करने होंगे तो मैं गुरु के चरण ही पहले स्पर्श करूंगा क्योंकि गुरु ही भगवान तक पहुॅचने का मार्ग बताते हैं।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय।।
गुरु ही ज्ञान से हमारे भय को दूर करते हैं और जीवन के अंधकार को प्रकाश से भर देते हैं। कहा भी जाता है – जिसके जीवन में गुरू नहीं, उसका जीवन शुरू नहीं।
दिगम्बर जैन गुरु तो साक्षात चलते-फिरते भगवान समान हैं। वे जीवन्त तीर्थ हैं, साक्षात अरिहन्त हैं। वे अरिहन्त भगवान की तरह कर्म शत्रु को विजय करते हैं, तो सिद्ध भगवान की तरह अपनी आत्मा को विशुद्ध बनाते हैं।
परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज के गुण, महिमा और उपकार इतने अद्भुत विशाल हैं कि भक्त यदि ऐसे गुरु को पाकर आनंद, सुख और प्रसन्नता से भर जाएँ तो इसमें क्या आश्चर्य है। मेघों को देखकर जैसे मयूर प्रसन्नता से नाच उठता है, वैसे ही गुरु का दर्शन, सानिध्य पाकर भक्तों का मन मयूर भी खुशी से झूम उठता है प्रसन्नता से नाच उठता है। आम के पेड़ पर बौर (कली) आने पर जैसे कोयल अपने आप कुहकने लगती है, वैसे ही भक्त भी सच्चे गुरू के सानिध्य को पाकर भक्ति में ऐसे भावविभोर हो जाते हैं कि अनेक तरह की भक्तियाँ, पूजा, कविता, आरती, अष्टक उनके हृदय के भावों से बाहर आकर लेखनी में उतर जाते हैं।
यही नहीं, गुरु के सानिध्य, संगति को पाकर बहुत से भक्तों के अन्दर छुपी हुई प्रतिभा बाहर आने लगती है और वह ऐसे कार्य कर लेते हैं जो उन्होंने कभी सोचे भी नहीं थे। अनायास ही वे गुरु की भक्ति में कविताएं लिख डालते हैं, लेख लिख डालते हैं। अनेक तरह से गुरु की भक्ति, प्रभावना करने लगते हैं।
कुछ भक्त अपनी भावनाएं अनेक प्रकार से प्रदर्शित कर देते हैं परंतु जो भक्त ऐसा नहीं कर पाते वे भी गुरुभक्ति और समर्पण में कम नहीं होते क्योंकि गुरु आज्ञा का पालन, गुरु वचन को जीवन में उतारना, गुरु के प्रति श्रद्धा और अनुमोदना में वह भी अपने को समर्पित कर देते हैं।
इस भावांजलि सेक्शन में कुछ गुरु भक्तों, श्रावकों के द्वारा रचित पूजन, आरती, हाइकू, अष्टक को संजोने का प्रयास किया गया है। यह भावांजलि सभी भक्तों की तरफ से परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज के चरणों में समर्पित है।
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1 | गुरु पूजन – 1 | श्री अक्षय जी डांगरा - बांसवाड़ा (संकलन) | |
2 | आरती | विनय जैन - बाँदा मध्य प्रदेश स्वर - अनुष्का जैन - नोएडा | |
3 | गुरु पूजन - 2 | श्री नितिन जैन, कृष्णा नगर - दिल्ली | |
4 | प्रणम्याष्टक | डॉ. मनोहर लाल आर्य संस्कृत विभागाध्यक्ष - पतंजलि यूनिवर्सिटी, हरिद्वार स्वर - प्रियंका जैन - सदर (मेरठ) | |
5 | भजन एल्बम | जिनवाणी चैनल | |
6 | हाइकू एवं मेरी अभिलाषा (पद) | श्री नितिन जैन, कृष्णा नगर - दिल्ली | |
7 | संस्मरण | दीप्ति जैन, रोहिणी, दिल्ली |