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जय उसह जिणेसर आदिदेव
जय अजिय सुरासुर-पाय-सेव ।
जय संभव जिद-भवसयल-दोस
जय अहिणंदण आणंद कोस ।। 1 ।।
जय सुमइणाह सम्मइपयास
जय पउमप्पह सिवलोयवास
जय जय सुपास णियभत्तपास
जय चंदप्पह-जिणवर चंदभास ।। 2 ।।
जय पुप्फदंत महिमामहंत
जय सीयल सीयलवयणकंत
जय सेय सेयपहदरिससुज्ज
जय वासुपुज्ज तियलोयपुज्ज ।। 3 ।।
जय विमलजिणेसर विजियचित्त ।
जय जय अणंतजिण अइपवित्त
जय धम्मणाह धम्माहिराय ।
जय संतिणाह जगसंतिदाय ।। 4 ।।
जय कुंथुजिणेसर दयावंत
जय अरजिण णाह विमुत्तिकंत
जय मल्लिजिणेसर विहदकम्म
जय मुणिसुव्वय जिण पत्तसम्म ।। 5 ।।
जय णमिजिण भवतणमोहमोक्ख
जय णेमिजिणेसर सीलसोक्ख
जय पासणाह सम्मेद- मुत्त
जय वड्ढमाण देसिदजिणुत्त ।। 6 ।।
चउवीस जिणेसर वंदणेण
मम चित्तं णिम्मलयरं जेण
जिणवर-भत्ती पुण्णेण होइ जो करइ तियालं सुहं लेइ ।। 7 ।।
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हिंदी अर्थ
1.ऋषभ जिनेश्वर आदि देव जयवंत हों। सुर- असुर जिनके पद की सेवा करते हैं वह अजितनाथ जयवंत हों। संसार के सकल दोष जीतने वाले संभवनाथ जयवंत हों। आनंद के कोश अभिनंदननाथ जयवंत हों।
2 सन्मति का प्रकाश करने वाले सुमतिनाथ जयवंत हों। शिवलोक वासी पद्मप्रभ जयवंत हों। निज भक्तों के पास रहने वाले सुपार्श्वनाथ जयवंत हों। चन्द्रमा के समान चन्द्रप्रभ जिनवर जयवंत हों।
3 महिममहंत पुष्पदन्त जिन जयवंत हों। शीतल वचनों के कान्त शीतलनाथ जयवंत हों। श्रेय पथ को दिखाने के लिए सूर्य समान श्रेयोनाथ जयवंत हों। तीनलोक में पूज्य वासुपूज्य जिन जयवंत हों।
4 चिन्त विजेता विमल जिनेश्वर जयवंत हों।अति पवित्र अनंतजजिन जयवंत हों। धर्माधिराज धर्मनाथ जयवंत हों। जगत को शांति देने वाले शांतिनाथ जयवंत हों।
5 दयावंत कुंथुजिनेश्वर जयवंत हों। विमुक्ति के कान्त (प्रिय) अर जिननाथ जयवंत हों। कर्मनाशक मल्लि जिनेश्वर जयवंत हों।साम्य के पात्र मुनिसुव्रत जिन जयवंत हों।
6 भवतन मोह से मुक्त नमिजिन जयवंत हों। शील सौख्य नेमि जिनेश्वर जयवंत हों।सम्मेद शैल से मुक्त पार्श्वनाथ जयवंत हों।कहे हुए जिन को ही कहने वाले वर्धमान जयवंत हों।
7 चूँकि चौबीस जिनेश्वर की वंदना से मेरा चित्त निर्मलतर होता है,जिनवर की भक्ति पुण्य से होती है जो यह भक्ति त्रिकाल करता है वह सुख प्राप्त करता है।