गगन मगन है गगन में, निर्मल शुद्ध स्वभाव
चेतन चेतन में मगन जग जड़ पूर्ण विभाव
चेतन का चैतन्य में चेतनता से ज्ञान
जहाँ हो रहा वही है उपादेय चिदधाम
शुद्ध चिद्रूपोऽहं
ज्ञान ज्ञान में ज्ञेय ज्ञेय में ज्ञायक आतम राम
नभ नभ में है धूलि धूलि में निज-निज परिणति जान
जिसके चिंतन मनन ध्यान से मद मत्सर बे काम
बहुत थक गए अब तो होवे चेतन में विश्राम
शुद्ध चिद्रूपोऽहं ………..
भेद ज्ञान कर हंसा बन जा नीर क्षीर पहिचान
चेतन क्या निश्चेतन क्या तू भेद ज्ञान से जान
ज्यों सोने से प्रस्तर हटता चमक दमक संधान
त्यों चेतन से मोह हटे तो शुद्ध चेतना ध्यान
शुद्ध चिद्रूपोऽहं ………..
जिसके ध्यान से आत्म विशुद्धि अरू शुद्धि से ध्यान
करण कार्य वही फिर कारण रूचि बढ़ती निज ध्यान
उसी ध्यान से भेद ज्ञान हो उसी से केवलज्ञान
ध्याता ध्यान अरू ध्येय एक जहँ निज संवेदन नाम
शुद्ध चिद्रूपोऽहं ………..
छह अक्षर का मंत्र ये अनुपम तोड़े मोह अज्ञान
जिस चिन्तन से संवर होवे तत्क्षण ऐसा जान
ज्ञान बढ़े वैराग्य बढ़े फिर नहीं राग का काम
चिन्ता चित् दोनो विभिन हैं निजानन्द मम नाम
शुद्ध चिद्रूपोऽहं ………..