बन के भौंरा तेरी खुशबू में कई बार यहाँ
मैंने मर-मर के जाँ गवाई बहुत बार यहाँ
मैंने मर-मर के…..
वही गुलशन है वही गुल है गुलचीं भी वही
ये हकीकत है जो समझा नहीं एक बार यहाँ
मैंने मर-मर के…..
चाह बदली है रूप बदले हैं, मंजिल है वही
पाके सब कुछ नहीं पाने सा, रहा दर्द यहाँ
मैंने मर-मर के…..
कोई बतला दे कैसे रोकूं, ये जिद अन्तस की
डूब जाती है मेरी, कश्ती क्यूँ हर बार यहाँ
मैंने मर-मर के…..