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अब मोहे समकित सावन भायो
इस सावन से, गुरू भक्ति में
मेरा मन सुख पायो
सिद्ध शिला की छत पर मैंने
भक्ति डोर लटकायो
ता पर चारित तखती रखकर
बैठ भावना गायो
अब मोहे……
शुद्धातम उपदेश घनाघन
रिमझिम निर्जर छायो
छठ-सातें गुण ठाण बिठाकर
गुरू ने मोहि झुलायो
अब मोहे……
आतम सुख हरियाली निरखत
चहुँगति दुःख भुलायो
पी-पी कर गुरू के वचनामृत
चातक सम हरषायो
अब मोहे……
सावन मास सुवास सदा ही
ताप तुषार हटायो
गुरू उपकार कहयो नहिं जाये
ज्ञायक भाव सुहायो
अब मोहे……
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