मन तू भ्रम में काहे भ्रमावे

आती मृत्यु जाता जीवन,
रीते रहते, सपने यौवन
हर सावन में प्यासा पपीहा,
एक बूंद तरसावे।
मन तू भ्रम में काहे भ्रमावे।।

लहरों से जो माटी आये,
उससे घर साहिल पे बनाये
लहरें आयीं ले गई माटी,
काहे तू इठलाये।
मन तू भ्रम में काहे भ्रमावे।।

सब कुछ जाने, सब कुछ खोजे
इक गति छोड़े, दूजी होजे
परमारथ की प्रीति बिना तू
काल हि व्यथा गँवावे।
मन तू भ्रम में काहे भ्रमावे।।

पाप छोड़ता, पुण्य को भजता
तज बेड़ी, हथकड़ी को गहता
शुद्धातम की छटा निराली
मोही मन ना भावे।
मन तू भ्रम में काहे भ्रमावे।।

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