धन्य-धन्य मुनि महातपस्वी संजम को श्रृंगारो।
केशलोंच कर तन ममता तज आतम पृथक् विचारो।
तीर्थकर से महा यशस्वी चक्री बलधर मानव
केशलोंच कर दीक्षा धारे पूजें सुर नर-दानव ।।1।।
पंच मुष्टि कच लोंच किये जे ते तीर्थकर ध्यावें
उनके ही मारग पर चल कर मुनि मन निज हर्षावें।
जा को नाम सुनै भय होवे देखत विस्मय होवे
सो लुंचन कर परम तपस्वी तनिक न धीरज खोवें ।।2।।
कामदेव सम सुन्दर तन में यौवन मदन बढ़ावे
बाल सँवारे रूप निहारे रागी मन सुख पावे।
उन केशन को आप हाथ से नोंचत ना घबरावे
चुन-चुन खींचे मुनिवर मानो चुन-चुन कर्म खपावे ।।3।।
आतम हित के हेतु तपस्वी तन को ममत निवारें
एक यही अवसर है जिससे मोक्ष पंथ पग धारें।
क्लेश काय को बने न मन को भाव विशुद्ध संभारे
निज तन ही जब नोंच दियो तो पर हैं कौन हमारे ।।4।।
एक बाल भी खिच जावे तो दीन मनुज बिललावे
धन्य-धन्य तुम तपसी मुनिवर मन में म्लान न लावे।
शिर दाढ़ी अरू मूंछ तने जे केश आप तज दीने
जिनको देखत शूरवीर भी हो जावत भय भीने ।।5।।
दो त्रय चार मास में मुनिवर उत्तम, मध्य, जघन्या
लोंच करन का वीरज लख के ललचाई शिव कन्या।
जो असिधारा व्रत ये पालें करके इन्द्रिय वश में
उनके लिए स्वयं हो जाती जगत सम्पदा वश में ।।6।।
धन्य-धन्य मुनिवर तव जीवन धन्य घड़ी यह आई
केशलोंच तव देखत-देखत आतम शुध बुध आई।
जिनके केश देव जन लेकर क्षीर उदधि को जावें
उन केशन की महिमा कैसे सुधी मनुज गा पावें।।7।।
नहीं याचना करें किसी से दीन-हीन ना होवें
मुनिवर तातैं निज हाथों से केशलोंच कर सोहें।
आश किसी की जिन्हें न जग में उन आशा हम कीनी
हाथ जोर कर तव चरणों में विनती हम कर लीनी ।।8।।
मुझमें भी गुरू साहस देओ बुद्धि, विवेक जगाओ
मेरी आतम में जो बैठे ममता मोह भगाओ।
तव भक्ति से वर यह चाहूँ शक्ति मुझमें आवे
जो अनन्त बलवान आतमा शिव सुख को पा जावे ।।9।।
(दोहा)
सिद्ध प्रभु का ध्यान कर सिद्ध शिला की ओर ।
चले सिद्ध गति पावने उन्हें नमन कर जोर ।।10।।
जिनके तपः प्रभाव से इन्द्र होय नत माथ।
देखभाल वर तेज को रवि-शशि जोडें हाथ ।।11।।
केश लोंच महिमा अगम शक्ति कहन की नाहिं
जो निज अनुभव कर कहे वह ‘प्रणम्य’ जग माहिं ।।12।।