हर घड़ी परिणमन जानता देखता, हाँ वहीं है नूर।
रोशनी का वही दरिया ज्ञान का हाँ वहीं है जरूर।
ये जमीं ये गगन सब अपने में है मगन
क्या बना सका ईश्वर ये कुदरत ये चमन
वो ही तो है सुख दुख से परे, जो है सभी से दूर
रोशनी का वही दरिया ज्ञान का हाँ वहीं है जरूर ।।1।।
इक बूंद पानी की अमृत बने विष भी
जैसी मिली संगत ढ़ल जाती वैसी ही
वो ईश्वर है जो करता नहीं हमको यहाँ मजबूर
रोशनी का वही दरिया ज्ञान का हाँ वहीं है जरूर ।।2।।
भटका अनादि से सबका यहाँ आतम
जो देखता उसको मिट जाए मिथ्या भ्रम
वो ईश्वर है जिसको देखो रस्ता मिलेगा जरूर
रोशनी का वही दरिया ज्ञान का हाँ वहीं है जरूर ।।3।।
सुख ज्ञान दर्शन की शक्ति अनन्त रखे
निज आत्म सुख में लीन, जग राग रोष हरे
वो ही तो है मेरा भगवन भक्ति करो भरपूर
रोशनी का वही दरिया ज्ञान का हाँ वहीं है जरूर ।।4।।