तरणि विद्यासागर गुरु, तारो मुझे ऋषि,
करुणा कर करुणा करो, कर से दो आशीष ।।1।।
यही प्रार्थना आप से अनुनय से कर जोड़,
पल-पल, पग-पग बढ़ चलूं मोक्ष महल की ओर ।।2।।
दुर्लभ गुरु मुख से वचन, दुर्लभ गुरु मुस्कान।
दुर्लभ गुरु आशीष है, दुर्लभ गुरु से ज्ञान ।।3।।
दुर्लभ से दुर्लभ रहा, गुरु गरिमा गुणगान।
गुरु आज्ञा पूरण पले, दुर्लभतम यह जान ।।4।।