कहाँ खो गयी है खुशी जिन्दगी की
क्यों गम में है अब जो हसीं जिंदगी थी
वो बचपन का हँसना सदा मुस्कराना
वो कितना सहज था सभी गम भुलाना।
है कितना ये बेवश कि हँस भी न पाता
नहीं कुछ भी गम पर न हँसना सुहाता।
बड़ा होके जीना भी कितना है मुश्किल
ये खुद ही सिपाही है खुद ही मुवक्किल।
कठिन क्यों हुई जो सहज जिन्दगी थी
क्यों गम में है………….1
वो मित्रों की महफिल वो अपनों की संगत
नहीं कुछ भी डर था, थी मौजों की रंगत।
बिछड़ते गए उम्र के दौर में सब
उड़े डाल से खग कहाँ थे कहाँ अब।
सभी बीच रहकर जो रहते थे सुलझे
वही आज अपनी ही उलझन में उलझे।
उलझ क्यों गई हैं खुशी जिन्दगी की
क्यों गम में है………….2
गये थे खुशी लेने बाजार में जो
ठगे से, लुटे से, खड़े दिख रहे वो।
ये दुनिया के बाज़ार का भ्रम है कैसा?
जो दिखता है जैसा नहीं होता वैसा।
बनाया जिन्हें दोस्त दुश्मन बने हैं
समझ ही न आता कि क्या सामने है?
तड़फ क्यों रही हैं खुशी जिन्दगी की
क्यों गम में है………….3
बना आज पैसा ही पैसा जरूरत
वही बाप, भाई, वही खूबसूरत।
पिता, मात, भाई न बीबी, न बेटी
सभी दूर बस पास, पैसे की पेटी।
बहुत ऊँचा बनने की चाहत में हरदम
बचा है अकेला नहीं कोई हमदम।
बिखर क्यों गई हैं खुशी जिन्दगी की
क्यों गम में है………….4