व्रत विज्ञान (तत्त्वार्थ सूत्र के सातवें अध्याय पर प्रवचन)

         व्रतों का सम्बन्ध आध्यात्मिक जगत से होता है और विज्ञान का सम्बन्ध भौतिक जगत से होता है। इस स्थिति में क्या व्रत और विज्ञान में भी क्या कोई परस्पर  सम्बन्ध हो सकता है? क्या व्रतों में भी विज्ञान समाहित होता है?  इसी विषय को स्पष्ट करते हुए व्रतों के बारे में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जानकारी देती है पुस्तक— व्रत विज्ञान।

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       व्रत विज्ञान आपने जब इस पुस्तक या रचना का नाम पढ़ा होगा, तो हो सकता है आपको कुछ अजीब सा लगा हो कि यह तो धार्मिक पुस्तक लग रही है, फिर विज्ञान शब्द इसमें क्यों लगा है? “व्रत” तो एक आध्यात्मिक शब्द है फिर उसके साथ “विज्ञान” शब्द का क्या मतलब है? धर्म और विज्ञान इन दोनों को तो एक दूसरे का विरोधी माना जाता रहा है फिर इस पुस्तक का नाम व्रत विज्ञान क्यों?आदि सवाल आपके मन में आ सकते हैं।

     इस पुस्तक में विज्ञान शब्द इसलिए लगा है कि जैन धर्म में प्रत्येक बात और प्रत्येक क्रिया के पीछे कोई ना कोई कारण एवं तथ्य जरूर होता है, जैसे विज्ञान में होता है। जैन धर्म को यदि नए शब्दों में व्याख्यान explain किया जाए तो यह भी एक विज्ञान की तरह ही है।

              दूसरे यह पुस्तक अद्भुत लेखनी के धनी, परम पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज के प्रवचनों पर आधारित है। पूज्य मुनि श्री प्रत्येक विषय और तथ्य को इतने नये ढंग से explain करते हैं कि उनकी बात सभी को ऐसे समझ में आती है, जैसे विज्ञान के तथ्य और तर्क समझ में आते हैं। इस कारण भी ये पुस्तक एक नये विज्ञान (new science) की पुस्तक जैसी लगती है।

       यह पुस्तक अपने में  पूरे जैन धर्म के सार को समाहित रखने वाले और परम पूज्य आचार्य श्री उमा स्वामी विरचित, तत्त्वार्थ सूत्र ग्रंथराज के सातवें अध्याय पर, पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी महाराज के सरलता से समझ में आने वाले आत्मकल्याणकारी प्रवचनों को लेकर लिखी गई है।

यह पुस्तक क्या—

        इस पुस्तक का विषय है– व्रत। ‘व्रत’ शब्द को तो  सभी जानते हैं लेकिन वास्तव में व्रत क्या होते हैं? जैन धर्म में किस प्रकार के व्रत होते हैं ? इस पुस्तक में पूज्य मुनि श्री ने इन व्रतों को वैज्ञानिक ढंग से समझाया है। इसके साथ ही, व्रतों के अतिरिक्त क्या कुछ भावनाएं भी उनके साथ होना जरूरी है? मैत्री, प्रसन्नता, करुणा और माध्यस्थ भाव रखने से क्या लाभ होते हैं? महाव्रत क्या होते हैं? अणुव्रत कैसे होते हैं? उनके साथ अन्य कौन से व्रत पालन किए जाते हैं? व्रत में अतिचार (दोष) कैसे लग जाते हैं? पाँच पाप क्या हैं? इनसे कैसे बच सकते हैं? क्या क्या सावधानी जरूरी है? आदि सभी प्रश्नों का उत्तर पुस्तक में एक गहन चिन्तन के साथ मिलता है जो सरलता से समझ में आता है।

पुस्तक की कुछ अन्य विशेषताएं—

(1) ये पुस्तक उन लोगों के लिए किसी उपहार से कम नहीं है जो व्रतों के बारे में जानना चाहते हैं पर उनको कोई सरल रूप एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाने वाला नहीं मिलता।
(2) युवाओं के लिए और जिज्ञासा रखने वाले सभी लोगों के लिए यह पुस्तक बहुत सहायक है।
(3) इस पुस्तक में मन में उठने वाले अनेक सवालों और अनेक ऐसी समस्यायें जिनसे हम परेशान हो जाते हैं, उनका भी जवाब मिलता है— जैसे कोई हमारा बुरा करे तो हम क्या करें? कर्म सिद्धांत क्या होता है? भावनाओं का भी क्या भोजन पर प्रभाव पड़ता है? मन को प्रसन्न रखने वाले सूत्र कौन से हो सकते हैं? संसार में सुख कहाँ है? युवा पीढ़ी की सोच कैसे बदल रही है? सल्लेखना और आत्महत्या में क्या अन्तर है? आदि।
(4) एक अन्य विशेषता जो इस पुस्तक को बहुत महत्वपूर्ण बनाती है, वह है, नये चिन्तन के साथ इसमें सभी विषय स्पष्ट हो रहे हैं।
(5) पुस्तक में दिए गए अनेक चित्रों और diagrams ने विषय को समझना और ज्यादा सरल बना दिया है। इसके साथ ही अनेक कथानक उदाहरण और दिए गए headings भी इस पुस्तक की खूबी को और ज्यादा बढ़ा देते हैं।

           निष्कर्ष रुप में, जो लोग व्रतों के बारे में सरल शब्दों में, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से और गहराई से समझना चाहते हैं, analysis करना चाहते हैं, उनको यह व्रत विज्ञान पुस्तक अवश्य पढ़कर देखनी चाहिए।

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