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कुछ हो या ना हो मेरा मन दुर्बल ना हो
प्रेम भाव से क्षमा भाव से समता मय मेरा स्वभाव हो,
गुणी जनों के दर्शन से मन मंगल-मंगल हो ।।1।।
कुछ हो या न हो मेरे मन में घृणा न हो
कुछ हो या ना हो मेरा मन दुर्बल ना हो।।
जो भी मिला है मुझको जग में निर्मल-निर्मल लगा है मन में
क्रोध रहित जो काम रहित जो ऐसे गुरू की भक्ति नित हो ।।2।।
कुछ हो या ना हो मन गुरू निन्दक ना हो
कुछ हो या ना हो मेरा मन दुर्बल ना हो।।
मोक्ष मिलेगा मिलता रहेगा धर्म पलेगा फलता रहेगा
अहंकार तज कुटिल भाव तज मन तुम सरल रहो ।।3।।
कुछ हो या ना हो मेरे मन में छल ना हो
कुछ हो या ना हो मेरा मन दुर्बल ना हो।।