जिंदगी जिंदा कहाँ है?

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हर दिशा आशा बनी, फैली हुई आकाश तक,

तोड़ लाऊँगा सितारे, यह यकीं था आज तक,

पर वहीं से लौटते राही के चेहरे पे सिकन

देखकर मुझको लगा कि जिन्दगी जिन्दा कहाँ है?

दुःखी कोई प्रीति करके, दुःखी कोई प्रीति बिन

दुःखी कोई पुत्र से तो, दुःखी कोई पुत्र बिन

पुत्र इच्छा से बढ़ी, पुत्री की संतति से दुःखी

देखकर मुझको लगा, कि जिन्दगी जिन्दा कहाँ है?

वो दीवाली दीप वाली और ये होली के रंग,

उत्सवों से सजी सुबह, मृत्यु के साये में भंग,

मरघटा पर प्राण घट दो, फूंक करके लौटते,

सोचकर मुझको लगा कि जिन्दगी जिन्दा कहाँ है?

पुण्य के संयोग से कुण्डलगिरि शुभ क्षेत्र पर,

आचार्य श्री के दर्श से, जब हर्ष छाया चित्त पर,

और वो वात्सल्य कर का स्पर्श पाके आपसे,

सोचकर मुझको लगा कि जिन्दगी जिन्दा यहाँ है।

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