अरिहंत भजन कर प्यारे

अरिहंत भजन कर प्यारे
जा करने तें पातक भाजें
दूर होंय अंधियारे।
अरिहंत भजन……

पर परिणति में मनवा डोले
आकुलता दुख सारे
निज चेतन ही दिखे निराकुल
जब अर्हन् चित धारे।
अरिहंत भजन……

यह करना फिर, फिर यह करना
फिर-फिर करनी कारे
एक बार कर करनी ऐसी
छूटें गति गलियारे।
अरिहंत भजन……

रस विहीन आतम रस अनुपम
निज अनुभव रसिया रे
एक बार चाखे जा रस जो
लगें भोग रस खारे।
अरिहंत भजन……

Posted in Bhajan.

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