अरिहन्तों की प्रतिमाओं का

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अरिहंतो की प्रतिमाओं का ध्यान धरो भाई,

कोई भी ना करे जिसे वो काम करो भाई,

भोगों की चाहत में राहत किसको यहाँ मिली,

बगिया में वह कली कौन सी रहती सदा खिली,

मानव जिसमें धंसता जाता जीवन वह खाई

कोई भी न करे ……

सांसों की चाबी से चलता तेरा देह खिलौना,

बच्चों सा यह खेल सदा ही तुझको लगा सलौना,

समय मिला ना आत्मज्ञान का अब मृत्यु आई,

कोई भी न करे ……

तन अपना जब धोखा देता क्यों पर को चाहे,

पंछी मर जाता पिंजड़ें में उड़ना ना चाहे,

अपने को पहचान यहाँ अरु सबसे माँग विदाई

कोई भी न करे ……

यदि तू चाहे नहीं डूबना इस भव सागर में,

अरिहंतों को नहीं भूलना घर में बाहर में,

इसी नाम की रटना से तू प्रीति लगा भाई

कोई भी न करे ……

Posted in Bhajan.

2 Comments

  1. गुरुवर की तो हर बात अच्छी लगती है

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